युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
नैसर्गिक करतब आभा में, संकट से जो टकराते।
मिलकर चरित तराने रचते,साम्यावस्था ला पाते।।
मार्ग कठिन शृंगों को भाते, कर्मशील ज्ञानी होते,
गर्म हवा दे ठण्डी वर्षा, पौरुष दुख में मुुसकाते।
भूलों से शिक्षा लेकर ही, नव प्रातः जो वर लेते,
नवाचार के शुद्ध प्रयोगी, ऊर्जा प्राविधि सँग भाते।
स्थायी सम्पद कब जीवन है,उपनिधि धरिमा-सी होती,
वीर भाव प्रतिपल जाग्रत हों,आपद उप-क्रमसमझाते।
हार मिले विचलित कब होते, कल पुर्जे नव रच देते,
पूर्वाग्रह से बच कर चलते, भावी मानक सरसाते।
मीरा भारती