भिन्नता

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

           मनोविज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर शिखर कोल जी ड्राइंगरुम में सोफे पर बैठकर एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार में प्रकाशित खबरों की जानकारी ले रहे थे। प्रथम पृष्ठ में देश की दूषित राजनीतिक प्रणाली पर आधारित खबरों को पढ़ते हुए उनकी नजर कुछ ऐसे शीर्षकों पर पड़ी कि वे हतप्रभ रह गये। वे पढ़ते जा रहे थे कि एक सड़क के किनारे चिंदी में लिपटी एक नवजात बच्ची की लाश मिली। तेरह वर्षीय बालिका का सामूहिक बलात्कार किया गया। अखबार के पन्ने उलटना उन्होंने जारी रखा। बीस वर्षीय विवाहिता को एक लोभी पति ने दहेज के लिए जिंदा जलाकर हैवानियत का परिचय दिया; जैसी खबरें उन्हें पढ़ने को मिली।

          प्रोफेसर कोल जी को अखबार के अंतिम पृष्ठ में पढ़ने को मिला कि एक युवक ने अपनी माँ की उम्र की औरत को अपने हवस कि शिकार बनाया। एक बेटे ने सिर्फ एक एकड़ जमीन के लिए अपनी माँ और इकलौती बहन की टंगिया मारकर हत्या कर दी। उनकी नजरें अखबार की बारीक अक्षरों पर पड़ी ही थी कि उन्हें जयघोष का स्वर सुनाई दिया। अखबार को पकड़े हुए खिड़की से झाँककर देखा। बच्चे, जवान और बूढ़े सभी जयनाद कर रहे थे- "दुर्गा मैया की जय, काली माई की जय, माँ बम्लेश्वरी की जय।"

          लोग दुर्गा व काली की प्रतिमा पर पुष्पों की वर्षा कर रहे थे। रंग और गुलाल से वातावरण रंगीन हो रहा था। प्रतिमा-विसर्जन की यह छवि देखकर प्रोफेसर कोल जी उलझन में पड़ गये। उन्हें अखबार की पंक्तियाँ रह-रहकर याद आने लगी। तीस वर्ष तक मनोविज्ञान के प्रोफेसर रहे शिखर कोल जी औरत के विभिन्न रूपों के प्रति लोगों के व्यवहार की भिन्नता को समझ नहीं पा रहे थे।

@ टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"

घोटिया-बालोद (छत्तीसगढ़-भारत)