युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
फूस का छप्पर
वह भी छ्लनी जैसा,
गर्मी में धूप छानता
वर्षा में बूंदें टपकाता।
न खिड़की पर पल्ला,
न कोई दरवाजा।
छप्पर के बाहर उपलों से
सुलगता एक चूल्हा ।
जलता जो दिन में एक बार,पकाता
खेत से बीना सागपात
जो निवाला निगलना
करता आसान।
तन पर झूलता पुराना कुर्ता
टांगों को ढकती धोती।
क़र्ज़ दर क़र्ज़ से मरता
यह था मेरे देश की
भूख मिटाता भूखा अन्नदाता।
कुछ बदल रही तस्वीर,
कृषि ऋण बैंकों से लगा मिलने परंतु
आड़ती आज भी हें जोंक,
षड्यंत्रों का आज भी शिकार किसान।
बीज, खाद ,कीटनाशक
लूट लेते मोटे किसान।
होती सिर फुटौवल नहरी पानी के लिए,
न्यायालय से भी नहीं लगता मरहम ।
स्थिति अब बदल रही
कुछ आमूल परिवर्तन हो रहे,
मिलने लगी कृषक को सम्मान निधि ।
न्यूनतम मूल्य, नियंत्रित मंडी, कृषि बीमा,
लाभ मिले अंतिम किसान को।
कृषक संघ न करे कंधा किसान का इस्तेमाल।
हो जायेगा अन्नदाता अब मज़बूत मेरे देश का।
बेला विरदी
1382, सेक्टर-18,
जगाधरी- हरियाणा
8295863204