रेडीमेड नेता और शवयात्रा

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

साफ-सुथरी सड़क पर अभी-अभी कचरा डाला गया था। हवा खुद बेशर्म हो चली थी। उससे यह देखा नहीं गया। रह-रहकर उस कचरे को उड़ाने में बदमतीज होती जा रही थी। अधिकारी इस बदमतीजी से परेशान हो-होकर कचरा कहीं उड़ न जाए उसके लिए अपने चमकीले जूतों से रोकने का प्रयास कर रहे थे। नेता जी आए झाड़ू लगाने का ऐसा ढोंग किया कि फोटो में असली वाली फील आ गयी। वैसे घोषणा यह हुई थी कि पुतले की शवयात्रा निकाली जाएगी, लेकिन इरादों के अनुसार नेता जी शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे। 

हांलाकि  उनके पास कितनी शक्ति है इस विषय पर विशेषज्ञों और जानकारों में काफी मतभेद है। कहते हैं प्रदर्शन  बाद में निकलते हैं शक्ति पहले दिखानी पड़ती है। इसका मतलब यह है कि प्रदर्शन  ही शक्ति है। नेता जी प्रदर्शन  का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, बल्कि मौके को आने में देर हो तो पकड़ कर घसीट लाते हैं। ऐसा ही घसीटा जा रहा मौका इस समय उनका रुतबा बढ़ा रहा है।

बहुत समय से नेता जी अपनी पूरी ताकत झोंके जा रहे हैं। लेकिन उन्हें कौन बताए कि झोंकना तभी सफल माना जाता है जब वह देखने वाले को दिखता है। शक्ति प्रदर्शन में तमाम महिलाएं शामिल हैं और सबने एक जैसी साड़ी पहन रखी है। पुरुष, यानी जिनकी जवानी अब जाती रही, सफेद कुर्ते में हैं। युवाओं ने, जिनमें ज्यादातर बारह तेरह साल से सत्रह अठारह साल के हैं लाल टी-शर्ट पहने हुए हैं। 

चर्चा है कि जोरदार तरीके से नारे लगाए तो शाम को दो-दो सौ रुपए और मिलेंगे सबको। हर हजार बारह सौ फुट की दूरी पर स्वागत-मंच बने हुए हैं, जिस पर नेता जी के पट्ठे दो क्विंटल फूलों के साथ तैनात हैं। सारा मार्ग बड़े-बड़े पोस्टरों से अंटा पड़ा है। सबमें  जीवित और दिवंगत राष्ट्रीय  नेता अभी-अभी उभर रहे रातों रात इंस्टेट रेडी नेता के साथ उनका समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं। मंचों पर उनके पोस्टरों का जलवा अलग है। इनमें रेडीमेड नेता जी सीना ताने, हाथ जोड़े, मां-भैन एक कर देने की मुद्रा में मौजूद हैं। ये खासतौर पर उनके विरोधियों के लिए हैं जो कल अखबार में उनकी फोटो देखने वाले हैं।

शवयात्रा के आसपास की भीड़ हाय-हाय के नारे लगा रही है ताकि उन्हें भ्रम बना रहे, शेष नेता जी की जयजयकार लगा रहे हैं कि उन्हें भी भ्रम बना रहे। उन्होंने एक युवा-सेना भी बना रखी है जो इस वक्त लाल टी-शर्ट में दिखाई दे रही है। वे सबसे आगे नारे लगाते चल रहे हैं कि जो नेता जी से टकराएगा, उसका ऐसा-वैसा हो जाएगा। यह भी कि जब तक सूरज चांद रहेगा, उससे ज्यादा नेता जी का मंगल रहेगा। जिस भी मंच के सामने से शक्ति प्रदर्शन हो रहा है वहाँ खूब तोड़-फोड़ हो रही है। 

पट्ठे फूल मालाएं नेता जी के गले में ठूंसे जा रहे हैं और वे बराबर गधे की तरह लदे-फंदे से नजर आ रहे हैं। लेकिन मजे की बात यह है कि उन्हें मजा आ रहा है, वे छा रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि यदि कहीं स्वर्ग है तो बस यहीं है, यहीं है। वे फूले तो पहले से ही थे अब समा भी नहीं रहे हैं। कल से वे सोए नहीं हैं लेकिन चेहरे सुस्ती नहीं है। सारा माहौल उनके पक्ष में फुदक रहा है। शवयात्रा अगर प्रतिक्रिया दे पाती तो पता चलता कि वह कितनी खिन्न और लाचार है। उसे लग रहा है कि शक्ति भगवान में नहीं नेता जी में है और वे  शवयात्रा को अपराधी की तरह जलाने जा रहे हैं।

शक्ति प्रदर्शन के पीछे बहुत कुछ छूट रहा है। फूल जो नेता जी के चरणों में फेंके गए थे, अब भीड़ द्वारा रौंदे जाने के कारण गन्दगी की श्रेणी में थे। पूरे रास्ते पर पानी के खाली पाउच और इसी तरह का बहुत सा कूड़ा-कचरा बिखरा पड़ा था। इससे ज्यादा कचरा पोस्टरों के रूप में उपर टंगा हुआ था। नारे लिखी हुई दीवारे भी शिकायत करती नज़र आ रही थी। लोगों के मन में बहुत कुछ भरा है लेकिन निकल कुछ नहीं रहा है, मुंह सबके एयर टाइट हैं। वहीँ कहीं एक वैद्यराज अपने रोगी से बोल रहे थे कि बीमारी तब तक खत्म नहीं होती जब तक कि उसकी जड़ को खत्म नहीं किया जाए।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657