मौन

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


मजुंषा डरते डरते सासुजी के कमरे में पहुंची क्योंकि आज शादी के बाद पहला त्यौहार था हरियाली तीज का । अभी मजुंषा और प्रतुल की शादी को 3 महीने ही हुये थे । ये 3 महीने किस तरह बीते थे यह मजुंषा शायद किसी को बता भी नहीं सकती थी । प्रतुल एक मल्टी नेशनल कम्पनी में इंजीनियर था। मजुंषा के पापा एक स्कूल में क्लर्क थे । 

मजुंषा से छोटी एक बहन, एक भाई मां और पापा 5. सदस्यों का मध्य वर्गीय परिवार शायद प्रतुल की मां और बहन को सन्तुष्ट नहीं कर पाया था क्योंकि शादी तो प्रतुल की पसंद से हुई थी। मजुंषा और प्रतुल दोनों ने ग्रेजुएशन साथ साथ किया। प्रतुल का सलैक्शन इंजीनियरिंग में होगया और मजुंषा ने एम.एस.सी करके एक कालिज में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। दोनों पता ना कब प्यार के बंधन में बंध गये कि जीने मरने की कसम खा ली पर किसी को पता भी ना चल पाया। 

जब प्रतुल ने कम्पनी ज्वाइन कर ली और रिश्ते आने लगे तब उसने घर वालों से कह दिया कि वह शादी तो मंजुषा से ही करेगा वह भी बिना दहेज के पर यह बात प्रतुल के घर वालों की अपेक्षाओं के विपरीत थी । यही कटाक्ष उसे सुनने को मिलते कि मेरे हीरे जैसे बेटे को मोह में फंसा लिया नहीं तो इतने अच्छे सम्बन्ध आ रहे थे । हीरे जैसा बेटा कोड़ियो के मोल ले लिया । 

मां का फोन आया कि वह सासुजी से पूछ कर बता दे कि तीजों पर नगद रू दे दे क्योंकि बेटा किसी को सामान पसंद नहीं  आता । बहुत हिम्मत करके वह कमरे तक पहुंची उसी समय ननद की धीमी धीमी आवाज सुनाई दी मां इस पर कोई भी लांछन लगा भाई की जिन्दगी से दूर करो भाई के कितने पैसे वाले घरों से सम्बन्ध आ रहे थे । यहाँ तो सारे अरमान ही दफन हो गये । 

वह लौट कर कमरे में आगयी। उसने प्रतुल को फोन किया और रोते रोते डर कर और सासुजी और ननद की बात बताई । प्रतुल ने कहा देखो सहन तो करना ही होगा । तुम खामोश रहो "एक चुप सौ को हराता है" पर मंजुषा का " जी खट्टा हो गया " हमेशा के लिये सास और ननद की षड्यंत्र भरी बातों को सुन कर फिर भी वह खुश थी कि प्रतुल उसके साथ है क्योंकि वह उसकी पसंद थी ।


स्वरचित

डॉ.मधु आंधीवाल

अलीगढ़