युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
आंसुओं को छिपा लेंगें
बारिश का बहाना है अच्छा !!
कहा था पढ़ लेना मन को
अनपढ़ का बहाना है अच्छा !!
एक ज़रा कैसे तुम्हें देखें
नजरों का छिपाना है अच्छा !!
कभी कुछ तो नहीं मांगा
वो नज़राना पुराना है अच्छा !!
कहां पहली सी नज़ाकतें
हां, वो गुज़रा ज़माना है अच्छा !!
सलीका कैसे अब सीखूं
मेरा कुछ न आना है अच्छा !!
अब कहो, कैसे कुछ कह दूं
'व्यस्तता' का बहाना है अच्छा !!
जिंदगी ,
सारी शिकायतें तुझसे ही
यूं रूठना-मनाना है अच्छा !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश