युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
श्वासों की मनकों में उन्हें पिरोकर,
यादों की वर्ती का लौ जलाकर,
उर तम में चंद्रमरीची की ज्योत जलाकर,
मधुर स्मृति की सुनाकर कथा,
आज फिर बाँच ली मैंने व्यथा...
किंकिणी मृदु स्पंदन में ध्वनित हुई,
कामायनी सी कंचन काया पल्लवित हुई,
यादों से तेरी मृगलोचन सुरभित हुई,
तनिक सस्मित,तरुणाई जैसे हो लता,
आज फिर बाँच ली मैंने व्यथा...
नयनों में प्रीत की मादकता है छाई,
तेरा नाम लेकर कपोलों पर है अरुणाई,
श्याम सलोने तुझमें मुग्ध,तुझमें हूँ समायी,
बावरी सी घूमूँ,मत पूछो कोई मेरा पता,
आज फिर बाँच ली मैंने व्यथा।
डॉ.रीमा सिन्हा (लखनऊ)