भले ही छांव मिली, याद रखा सफर धूप का ही..

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


यूं तो संगी-साथी हैं, है हरा-भरा ये घर का आंगन,

कुछ तो छूटा है ज़रूर, क्यों ये नज़र देखें पीछे ही !!


हम मुस्कराते रहे, मगर क्यों आंखों में नमी सी रही,

हर आहट पे मुड़े कि आई होगी आवाज उधर से ही !!


यूं तो संभाले "ख़त" तुमने, सहेजे मैंने भी वो पन्नें,

मुद्दतों में जो मिले अब, यूं लगे कि जुदा थे ही नहीं !!


यूं समझ लेते हो मन की बातों को बिन कहे ही तुम,

"छूट" जाता है‌ फिर जाने क्यों वो कुछ अनकहा ही !!


हां, माना सफ़र है जिंदगी, कट ही जाएगी कैसे भी

रह जाएगा बाकी क्यों मन में, उसकी राह तकना ही !!


कुछ पाना ही कब है जिंदगी, मैंने किया इंतज़ार ही,

भले ही छांव मिली, मैंने याद रखा सफर धूप का ही !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश