हो अगर कुछ, तो यूं हो जाए..

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


भागता ही फिर रहा हूं

मैं कब से इस शहर में

अब तो ये शहर थोड़ा सा गांव हो जाए !!


खड़े दिख रहे हैं हर तरफ

भगवान् ही भगवान् यहां ,

अब तो कहीं कोई ज़रा इंसान हो जाए !!


सुगबुगाहट सी होने लगी

इन घास के तिनकों में भी ,

घोंसलों के पंछियों के पंख परवाज़ हो जाएं !!


सावन है, हैं बारिशें भी यहां

आ जाए वो बचपन तो ज़रा

कि हमारी कापियों के पन्ने अब 'नाव' हो जाएं !!


सुनों..

जिए जा रहा था अब तलक

सिर्फ अपने ही लिए मैं ,

बस, वो जो मांगे दुआ कोई, स्वीकार हो जाए !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश