युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
बहुत पुरानी बात है। एक राजा थे। एक दिन उन्होंने आदेश दिया कि जनता के दिलों में फूल खिलना चाहिए। दिल में फूल खिलाना मतलब रेगिस्तान में हरियाली के सपने देखने जैसा काम था। लेकिन प्रजा ने देखा कि यह तो राजा के लिए चुटकी बजाने जितना आसान हो गया था। ‘तन-मन में फूल खिले न खिले, बैलट पत्र पर खिलना चाहिए’ इस बार के लिए यही आदेश हुआ था। आदेश राजा का हो और प्रजा न मानें, ऐसे कैसे हो सकता है? भला डर नाम की भी एक चीज़ होती है! वैसे भी जहान में रहकर जान की फिक्र सिर्फ बंदे करते हैं, परिंदे नहीं। कभी-कभी तो लगता है कि परिंदे बंदों से ज्यादा आजाद हैं। अपनी मर्जी से चहचहा तो सकते हैं। राजा के आदेश के खिलाफ जाना मतलब सीधे-सीधे देशद्रोह को गले लगाना था। फिर लगा चलो भई इस आदेश को मानने में तो फायदे ही फायदे हैं। कम से कम ताली बजाने से हाथ और थाली बजाने से बर्तनों की फजीहत तो नहीं होगी। फ्लैश के चक्कर में मूर्खता फ्लश होने का नाम ही नहीं ले रही थी। अभी तक ताली और थाली वाले वीडियो जनता के फोनों में भरे पड़े थे। जब-जब वे खुद को बहुत समझदार समझने का भ्रम पाल लेते तब-तब इन वीडियो को देखकर अपना चुल शांत कर लेते थे।
राज्य में कुछ पढ़े-लिखे भी थे। असली डिग्रीवाले। सबने मिलकर फूल खिलाने के नाम पर चंदा जमा करने का फैसला किया। जीएसटी (घंटा समझ-आया टैक्स) से मुक्त फूल खिलाने के लिए झुंड बनाकर झंड जैसा काम करना अंगूठाछापों के पल्ले नहीं पड़ा। वे कुछ समझते उससे पहले ही उनसे बिना किसी सवाल-जवाब के बेहिसाब ऐंठना शुरु कर दिया। फिर लगा हो न हो निकम्मों पर सेवाकार्य करने का भूत चढ़ा है। इसीलिए सब चुप्पी मारकर बैठ गए। भारी-भरकम राशि जमा होने पर पढ़े-लिखो ने इसे राजा के राहत कोष में जमा करने का निर्णय किया। अभी भी यह अंगूठाछापों को मूर्खता भरी हरकत लगी। महामारी तो चली गई। अब यह राशि किस राहत के लिए? राजा ने माँगा भी नहीं। वैसे माँगना राजा की शान के खिलाफ था। इसीलिए झूले से लेकर अर्थी तक जीएसटी लगाए बैठे थे। ससुरा किसी की मजाल जो इन सबसे बचकर चला जाए। पढ़े-लिखों ने राहत कोष में राशि जमा कर दी और राजा को टैग करते हुए एक नीली चिड़िया को चहचहाने के लिए उसके गले में एक इमेज लटका दिया। जिस पर लिखा था –
राजाधिराज महाराज! हर झुपड़िया में फूल खिलाने का ख्याल बहुत अच्छा है। लेकिन हमने देखा है कि पिछले कुछ वर्षों से आप संतरी खरीदने और सत्ता में बने रहने की कोशिश में बहुत राशि खर्च कर चुके हैं। हम नहीं समझते कि आपके महल पर फूल खिलाने के लिए फूल खरीदने भर की राशि भी बची होगी। ऐसे समय में हम आगे आकर आपको कुछ राहत देना चाहते हैं। हो सके तो राहत कोष में जमा हमारी राशि से फूल जरूर खरीद लें। कहीं पता चला कि सबकी झोपड़ियों में फूल खिल रहे हैं और आपका महल ही बिना फूल के सूना-सूना है तो यह आपके लिए न सही हमारे लिए बड़े शर्म की बात होगी। है तो आखिर आप हमारे राजा ही। राजा प्रजा का ख्याल रखे न रखे, प्रजा को तो राजा का ख्याल रखना ही चाहिए।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657