बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया

अस्पताल में मरीजों की जगह डॉक्टरों की भीड़ है। एक अजीबोगरीब केस आया है। देश-विदेश के डॉक्टर बुलाए गए हैं। वेंटिलेटर पर एक मरीज पड़ा है। मरीज बहुत जाना पहचाना है। सेलिब्रेटियों का भी सेलिब्रेटी है। नाम है – रुपया। मरीज के शरीर के बारे में बात करें तो सिर के नाम पर एक रुपए का सिक्का है। उसके पट पर एक लिखा है और आँख के नाम पर सूखे हुए मक्के की बालियाँ हैं। चित की तो बात ही मत करो। उसका चित कब का चित हो चुका है। 

अब वह देखने लायक नहीं बचा है। शरीर अस्थि पंजर बन चुका है। लगता है कि बहुत जल्द देश के आर्थिक शरीर की संरचना बताने के लिए इसी के कंकाल का इस्तेमाल किया जाएगा। फिर भी डॉक्टर जी जान लगा रहे हैं। नई-नई योजना वाले खून की बोतलें चढ़ाकर उसे जीवनदान देने की कोशिश की जा रही है।

शोध करने पर मरीज रुपए के बारे में चौंकाने वाली बातें सामने आयी। नए डॉक्टरों का कहना है कि इसकी उम्र पचहत्तर वर्ष हो चुकी है। इसकी दुर्दशा का कारण पचहत्तर वर्ष पूर्व के डॉक्टरों की देन है। पुराने डॉक्टरों ने इसकी हालत बहुत खस्ता कर दी है। न यह उठने लायक बचा है न बैठने। करें तो क्या करें। डॉक्टर जनता के साथ-साथ रो रहे हैं। 

कहते हैं, अब इसे कोई नहीं बचा सकता। अब ऊपरवाला चाहेगा तो कुछ भला हो सकेगा। नहीं तो कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए देश की जनता को चाहिए ज्यादा से ज्यादा प्रार्थना मंदिर बनाएँ। पूजा-पाठ करें। नौकरी-वौकरी में कुछ नहीं रखा है। वह क्या है न जब दवा हाथ दे दे तो दुआ ही काम करती है।

कहते हैं रुपया और डॉलर दोनों कमाने के लिए एक साथ ही निकले थे। किसे पता था बाजार की मार रुपया को बेजार और डॉलर को मालामाल कर देगा। अब देखिए न रुपया वेंटिलेटर पर पड़े-पड़े अंतिम साँसें गिन रहा है, वहीं डॉलर कोठियों पर कोठियाँ बना रहा है। रुपए की हालत देख अपने बेगाने हो गए हैं। जो रुपए की हालत सुधार सकते थे, वे विदेश चले गए। यहाँ तो केवल मक्खी मारने वाले बचे हैं। अब वे मक्खी उड़ाने जैसे सबसे जरूरी काम छोड़कर रुपए की जान बचाने के लिए थोड़े न आगे आयेंगे। 

ऐसा नहीं है कि रुपए को पूछने वाला कोई नहीं है। उसके बेशुमार प्रशंसक हैं। देश में अस्सी करोड़ तो उसी के प्रशंसक हैं। वे उसे बहुत चाहते हैं। लेकिन कभी भाग्य ने उन्हें मिलने का अवसर नहीं दिया। इसीलिए वे झोपड़पट्टी में और रुपया अस्पताल में पड़ा है। जिस दिन यह रुपया मरेगा उस दिन ये अस्सी करोड़ पछाड़ खाकर अपने आप मर जायेंगे। तब इन सबकी मौतों का जिम्मेदार कोई और नहीं देश के वो पुराने डॉक्टर होंगे जो पचहत्तर साल पहले हुआ करते थे।  

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657