चिरहरण हुआ द्रोपदी का
तब श्रीकृष्ण ने लूगा सौपा था
अब देह दहन हो रहा नारी का
हर जन ने लूगा छीना है
तब चुप थे भीष्म पितामह भी
अब चुप है रामराज्य मांगने वाले भी
तब मौन खरे थे गुरु द्रोण भी
अब मौन खरी सस्कारे भी
छीन मान सम्मान ध्रुपद कन्या का
दुर्योधन ने काल को ललकारा था
छीन-भीन कर जीवन औरत का
देखो तो खुद पे ये कैसे इतराते है
ना डर है इन्हें अब काल का
ना भय है उस महाकाल का
ना कोई कृष्ण अब आएगा
ना नारी की लाज बचाएगा
खुद होना होगा नारी को सबल
जैसे कृष्ण की सखा ने किया था प्रण
ना बाँधूँगी गेषु अपनी तबतक
जब तक कि दुर्योधन का ना हो
मेरे कदमों में मस्तिष्क
भीषण शनघार हुआ था तब
दुर्योधन को आया अंत मे समझ
नारी का अपमान जो करता है
उसे काल कभी न बक्सता है।
-- लवली आनंद
मुजफ्फरपुर, बिहार