हिंदी हमारी मातृभाषा

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

हिंदी का उद्गम स्थान पवित्र नदी सिंधु है,क्योंकि नदियों के आसपास जनजीवन आसान होने के कारण आदिकाल में सभ्यताएं विभिन्न नदियों के किनारे विकसित होती थी। जिस सिंधु नदी के पास सभ्यता विकसित हुई, उस सभ्यता को हिंदू कहा गया और उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को हिंदी कहा गया।

हिंदी सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है ,यह पूरे विश्व में लगभग पांच सौ मिलियन से भी अधिक लोगों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी भाषा सिर्फ हिन्दुस्तान या पाकिस्तान ही नहीं, अपितु मॉरीशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद, और नेपाल में भी बोली जाती है। यूं तो यह हमारी मातृभाषा है। हम हमारे जन्म से ही इस भाषा को बोलते हैं, पर स्थान परिवर्तित होने के कारण इस भाषा के बहुत से अपभ्रंश भाषा के रूप कालांतर से अस्तित्व में आए हैं।

हमें हमारे बचपन में हिंदी के वर्णों की जो शिक्षा दी जाती है, उस वक्त हम उच्चारण को ध्यान पूर्वक नहीं पढ़ते हैं ,जिस कारण हमारी हिंदी में बहुत सारी गलतियां आ जाती है, जैसे बिहार के गंगा पार वाले कुछ लोगों की भाषा में हमने सुना है कि.... "घोड़ा के जगह पर घोरा" बोलते हैं, और दूसरे क्षेत्र के कुछ लोग... "शशि के जगह पर ससि" बोलते हैं। कुछ लोग को छोटी इ की  किन शब्दों में एवं बड़ी ई की मात्रा किन शब्दों में लगती है, पता नहीं होने के कारण बहुत सारी व्याकरण अशुद्धियां हो जाती हैं, और हमारे हिंदी कमज़ोर पड़ जाती है।

हिंदी व्याकरण की सही जानकारी नहीं होने के कारण लोगों की हिंदी गलत हो जाती है जिससे इंग्लिश में भी गलतियां होने की संभावनाएं होती है।

हम लोग को बचपन में हिंदी के लिए पहले क ख ग घ सिखाया जाता था। और इंग्लिश के लिए k से क , kh से ख सिखाया जाता था ,अगर सही मात्रा का जानकारी नहीं हो तो मुझे लगता है की अंग्रेजी लिखने में भी गलतियां हो जाएगी ।

मेरी नज़र में अगर हमारी हिंदी को शुद्ध रूप से शुद्ध उच्चारण के साथ बचपन के शुरुआती शिक्षा में ध्यान दिया जाए तब हिंदी में गड़बड़ियां लेश मात्र होगीं ।

इसलिए तमाम शिक्षकों ,से मेरी हाथ जोड़कर सादर विनती है कि कृपया बच्चों की शुरुआती शिक्षा पर ध्यान दिया जाए।

"शिक्षक" सिर्फ शिक्षक नहीं होते हैं वह तो एक स्वस्थ समाज का आईना होते हैं जो वह दिखाएंगे समाज वही देखेगी, और हर इंसान की शुरुआती आधार होते हैं। बच्चे तो गुरु के पास कच्ची मिट्टी के समान आते हैं उसे जिस तरह से ढालेंगे बच्चों उसमें ढल जाएंगे , हां बड़े होने के बाद हो सकता है वह अपने विचार के अनुसार चले लेकिन बचपन में तो कच्ची मिट्टी के घड़े के समान ही होते हैं, इसलिए मुझे ऐसा लगता है की यह बात ध्यान देने योग्य है।

हो सकता है मैं गलत रहूंँ, मैंने अपने विचार साझा किए हैं, अगर इस आलेख में मुझसे कोई भी त्रुटि हुई हो या मेरे आलेख से किन्ही को आत्मिक ठेस पहुंची हो तो कृपया कर मुझे माफ़ करेंगे।

            अर्चना भारती नागेंद्र

        पटना (सतकपुर,सरकट्टी) बिहार