पराजित नहीं हैं हम..

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


गुजरती हुई तमाम रातों से

मैं बचाए रखती हूं

एक टूटता तारा..

एक सपना..

और छोटी सी नींद की झपकी ,


दुनियादारी की उलझनों से

सुलझा ले जाती हूं

तुम्हारे हिस्से की

थोड़ी सी फ़िक्र ,


मैं संभाले रखती हूं

ज़रा सा हरापन

हर बार के पतझड़ से ,

ताकि खिला सकूं

उम्मीदों के अनगिनत पुष्प ,


सुना तुमने

पराजित नहीं हैं हम ,

बचाए रखा है हमने

अथक, अपलक इंतज़ार

अपने-अपने एकांत से ,


शायद, ऐसे ही विजयी हो सकते हैं हम 

हर पतझड़ के बाद..हर बसंत में !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश