झुकना

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

सामान्य तौर पर किसी को

किसी के सामने

झुकने के लिए कहा जाए

तब वो नहीं झुकेगा,

रफ्तार जारी रखेगा, नहीं रुकेगा,

पर बिना मेहनत

पद प्रतिष्ठा की चाह

आदमी को झुकने पर

मजबूर करता है,

चमचागिरी करना झुकना ही है,

बिना मेहनत, बिना प्रयास,

धन दौलत की चाह,

जमीर को दुखाता है,

आदमी को झुकाता है,

स्वर्ग जन्नत की चाह,

नर्क, दोज़ख का डर,

आपको अकर्मण्य,

निठल्लों के आगे झुकाता है,

झूठे दिलासे देने वालों से

आंख से आंख

नहीं मिला पाता है,

ऐसा क्यों?

जब तक अपनी मेहनत पर

भरोसा नहीं होगा,

झुकना पड़ेगा,

अविश्वास के आगे

टूटना पड़ेगा,

जब तक झूठी शान शौकत में

विश्वास करने वाले रहेंगे,

उन्हें धन की कमी से,

उधारों की नमी से,

टूटना पड़ेगा, झुकना पड़ेगा,

स्वाभिमान की कीमत नहीं जानोगे,

झुके रहोगे,

स्वाभिमान कहां से मिलेगा,

केवल शिक्षा से,

तो खोजो,

एक अडिग मिशन की राह खोजो,

जिसमें बंधुत्व हो,समता हो,

जरा भी नहीं विषमता हो,

तो जागो,

शिक्षा की ओर तीव्र गति से भागो,

खुद की चेतना का उपयोग,

हमें दिखा देगा

बुद्ध, अम्बेडकरवाद,

जहां मिलेगा हर मसले पर संवाद,

अपनापन का अहसास।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़