परिस्थितियां खराब हैं मगर सब अच्छा हो रहा है वो कहते हैं । गरीब का जीना मुश्किल हो गया है। वो कहते हैं, पूरे देश में ऐसी स्थिति नहीं हैं। आत्मनिर्भरता आई हैं। सरकार ने लाई हैं। इसके बावजूद तंगहाली, नौकरियों के लिए मारामारी हैं। जब नौकरियां नहीं चारों और बेरोजगारी तो कैसा जीवन चल रहा होगा। व्यवस्था कैसी, गरीब तंगहाली में, बेरोजगार हताश हो जीवन छोड़ रहा हैं और अमीरों, अफसरों, नेताओं की वारेन्यारे हैं।
इनकी संपत्ति, धनदौलत पसरी जा रही हैं। गरीब रोटी, कपड़ा, मकान को तरस रहा है। काम को तरस रहा है। हमारे यहां जीना है तो चैन से जीना गरीब को नसीब में नहीं और महंगी लकड़ी-मंहगा कफन अर्थात चैन से मरना भी उसके सुकून में नहीं। यहां महंगाई जन्म, विवाह, कफन-लकड़ी अर्थात शमशान तक पीछा नहीं छोड़ेगी, आदमी मरने के बाद आत्मनिर्भर बनेगा क्या। उधर महंगाई की पूंछ में जीएसटी भी लगा हैं। यह महंगाई के राकेट में और आग लगाता जा रहा। जीएसटी पचई में नहीं आ रहा गरीबों की, धनीमानी और सरकार तो पचाने के लिए ही बैठी है। इकट्ठा करो और धरों पचाओ। पैसे वाला और फलता-फूलता हैं भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत होती हैं।
रिश्वतखोरी को भरपूर आक्सीजन भी मिलती हैं। सारे अनाज, दाल-चांवल, मसाले, सब्जियां, रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल और टेक्सों में महंगाई का दावानल हैं। आत्मनिर्भरता की मजमून चादर के नीचे और पीछे सारी कमियां, कमजोरियां, लाचारियां, दुश्वारियां याने गरीब, मध्यमवर्ग की बेबसी छुपी हुई हैं जो बीच-बीच में आत्मनिर्भरता की मजमून चादर को हटाकर अपना बदनसीब चेहरा दिखाती रहती है। यही हमारी वास्तविक असलियत हैं। फिर वही बात सामने आती हैं, परिस्थितियां खराब हैं मगर सब अच्छा हो रहा है ऐसा वो कहते हैं !
- मदन वर्मा " माणिक " इंदौर