आओगे इस बार वचन दो

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


तुम ही सखा, तुम ही प्रियवर

भाई का रिश्ता भी निभा दो ना,

बुलाते हैं राखी के धागे

कान्हा, इस बरस तो हाथ ला दो ना।


कितना याद करती तुझे विस्मृतियाँ

पूछती रहती हैं सब सखियाँ,

प्रीत धागा किसे बांधेंगी

या नैना इस बार भी बरसेंगी।


नहीं कोई जिसका

सब कहते तू है,

रिमझिम बूंदें बरसती यादों से

विकल यह बुलबुल है।


तुम ही मेरे बंधु - सखा

मातृ - पितृ, गुरु - भ्राता,

इस निर्मोही जग के बंधन में फिर

बांधें क्यूँ किसी से रिश्ते का धागा।


आओगे इस बार वचन दो

नयनों में मेरे अश्रु रज कण ना दो,

रक्षाबंधन के पर्व मनाऊं

आ जाओ कान्हा तुम्हें बुलाऊं।


-वंदना अग्रवाल 'निराली'

लखनऊ, उत्तर प्रदेश