आस है वतन को

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


विश्व में सदा भारतीय परचम का साज हो,

बैर भाव का कहीं कोई न राग हो।

प्रेम पूर्वक रहे सब, वसुधैव कुटुम्बकम का ही

सर्वदा आगाज हो, आस है वतन को।


सारी भ्रांतियां दूर हो,

हिन्दोस्तां न कभी मजबूर हो

मिटाए द्वेष, कलुष के घृणित राग,

वर्षा हो प्रेम की सुखमय आज।


कृषक की मेहनत का मूल्य चुके,

वृषभ की नुपूर ध्वनि को धरा न तरसे।

खून-खराबे की बंजर भूमि में

खिले पुष्प समता की छवि में।


धर्म - जाति से पहले नित

भारतीय की पहचान रहे,

मरे-मिटे केवल देश की खातिर

नहीं कोई और ध्येय जग सार रहे।


धरा खिलखिलाती रहे, अन्न उगाती रहे

हरित चुन्नी ओढ़े शीश पर

युगों - युगों तक मुस्काती रहे।

हिंदी है हम अभिमान हो

तिरंगा ही पहचान हो, आस है वतन को।


-स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

वंदना अग्रवाल 'निराली'

लखनऊ, उत्तर प्रदेश