सुनी है डगर अपनी


 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


सुनी है डगर अपनी ,

मगर जज़्बात जारी है।

भूल जाओ पुराने किस्से,

अब नही वफादारी है।


वहां हम जा नही सकते,

जहां नही कदरदानी हैं।

सुनी हूँ कुबेर करते उनकी दरबानी,

पर हमारी तो दो पहिया पुरानी है।


माना की मुकद्दर रूठा है मुझसे, 

मगर लहजे तो अपनी खानदानी है।

भला हृदय में बहती उदास नदियां

पर जुबानों में रईसी पुरानी हैं।


हम कभी उन गुनाहों से ना डरते 

जिनके चर्चे जुबानी है।

बस डरते उस रब से जिनके,

दुनिया दीवानी है।


वह हर रोज़ मिलते है,

मगर मगरूर अपनी रूबानी में।

कभी फ़ुर्सत में आ बैठो,

सुनायेंगें कलमों की जुबानी में।


समय लौट कर ना आता,

ऋतुओं का चक्र जारी है।

मगर मन ही ना भीगा हो तो 

खाक सावन सुहानी है।


रानी प्रियंका वल्लरी

बहादुरगढ़ हरियाणा 

8607978749