प्रेम ही पूजा है

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


आखर आखर जोड़कर,

शब्दों के सरगम बने।

सरगम में अनोखी धुन प्रीत की,

हर शब्द ये बोल रहा था,

प्रेम से बढ़कर ना कोई दूजा,

प्रेम ही भक्ति प्रेम ही पूजा।


अलग अलग है स्वरूप इसका,

वात्सल्य,ममत्व तो राधा के जैसा।

जोगन मीरा का भाव भी इसमें,

हर्षित उर का स्वभाव भी इसमें।

दृग पटल पर मूरत श्याम की,

दूरियों का आभास ना इसमें।


प्रेम की शक्ति हर पल महसूस होती है,

समपर्ण और त्याग से अभिभूत होती है।

चिर स्पन्द में रहती हरदम साथ,

मृदु स्वनिल पंख के वशीभूत होती है।


सच्चे प्यार का यही है सार,

प्रियतम हो दूर पर लगे पास।

दृगों की परिधि से बहे  कज्जल धार,

अँसुवन भी शुभ चाहे अपने प्रीत का,

प्रेम  बिन झूठा है यह संसार।


प्रेम है प्रेरणा,प्रेम है पावन निलय,

प्रेम ना वसन ,प्रेम ना व्यसन का आलय।

प्रेम है पल्लवित,पुष्पित निकुंज,

विशेष अनुभूति का इसमें विलय।


                 रीमा सिन्हा (लखनऊ)