बादलों का शंखनाद ओजस्वी छेड़ा तराना हो,
विहगों का विटपों पर शीघ्र वापस आना हो।
वन उपवन का जब खिलकर मुस्काना हो,
तब समझ लेना वर्षा ऋतु आई मदमाती।।
बादलों पर जब काले घने मेघ छाने लगे,
तप्त धरा पर सौंधी मिट्टी की खुशबू आने लगे।
जब झिंगुरे दादुर मीठे तराने गुनगुनाने लगे,
तब समझ लेना वर्षा ऋतु आई मदमाती।।
वसुन्धरा पर जब हरियाली छाने लगे,
बागों पर पपीहा,कोयल गीत गाने लगे।
जब मन बावरा प्रेमरस में डूब जाने लगे।
तब समझ लेना वर्षा ऋतु आई मदमाती।।
अन्नदाता जब हल पकड़ खेत जाने लगे,
खेतों में ओहो तोतो की आवाज आने लगे।
गाँव हो सुनसान खेतों में रौनकता छाने लगे,
तब समझ लेना वर्षा ऋतु आई मदमाती।।
रिमझिम बारिश में तन मन भीग जाने लगे,
सावन में झूले पड़े,सावन गीत गाने लगे।
नवयवन मन उल्लास से हर्षाने,इठलाने लगे,
तब समझ लेना वर्षा ऋतु आई मदमाती।।
महेन्द्र साहू "खलारीवाला"
गुण्डरदेही बालोद छ ग