युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
सुधेंदु पटेलपाच्छे दिनों की यादें!
जिंदगी में नियति स्थितियां निर्धारित करती हैं ,जो नियति से संघर्ष करके सर्वकालिक मूल्यों के लिए जीवन पर्यंत जूझते हैं | वे ही लोग अपने-अपने आसमान के 'नायक' हुआ करते हैं | वे हमलोगों के 'आसमान' तलाशने वाले दिन थे | "जौन होई तौन देखल जाई" (जो होगा देखा जायेगा) का हौंसला लिए समाज परिवर्तन के काम में 'समाजवादी युवजन सभा' के जरिये लगे हुए थे | यूँ तो अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन के समय से ही स्कूली और विश्वविद्यालयी वातावरण आंदोलित चल ही रहा था | पी.ए.सी के जवान शासन की और से सबको सामान भाव से लखेदने में लगे हुए थे | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पूरे प्रदेश के छात्र आन्दोलन की धुरी रहा था |
कुलपति थे कालूलाल श्रीमाली (मूलतः उदयपुर के रहवासी) की तानाशाही अपने चरम पर थी | वे छात्र संगठनों की मांगों पर विचार करने की जगह उन्हें आपस में लड़वाने का खेल खेलने में लगे हुए थे | स्थिति विकट थी | तभी समाजवादी युवजन सभा और विद्यार्थी परिषद् ने तत्कालीन राष्ट्रपति से दिल्ली चलकर गुहार लगाने की ठानी और हमलोग दिल्ली पहुंच गए | दोनों संगठनों के दिल्ली के साथी तो साथ ही थे | राष्ट्रपति को ज्ञापन देने जब राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो मुठभेड़ होना स्वाभाविक ही था | दिल्ली पुलिस ने हलकी लाठी-पिटाई के बाद हमें गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल पहुंचा दिया |
दिल्ली दिसंबर 1970 का आखिरी पखवाड़ा | जीवन में घटित स्मरणीय सफरों में से एक को याद किये जाने का सबसे प्रासंगिक समय मुझे यही सुझा | इतनी पुरानी घटना को अनेकों दोहराए जाने के कारण कई बातें तो याद रह गयी हैं पर अनेकानेक सहभागी पात्रों के नाम में अटकाव स्वाभाविक ही है | यहाँ मैं उन्हीं साथियों को नाम से याद करूँगा या यूँ कहूँ कि जिनके साथ क्रियाकलापों में सीधी भागीदारी रही थी, राष्ट्रपति भवन के विशाल आंगन से लगायत तिहाड़ की चौहद्दी तक में | बनारस के जिला जेल से देश की राजधानी के जेल तक का फांसला समाज में व्याप्त गैरबराबरी का मानो आइना-सा रहा था | कहां बनारस में चौवनियां अपराधी जेल में भेंटाते और यंहा तिहाड़ में लखटकिया स्तर के राष्ट्रिय अपराधिओं से जब सामना हुआ तो हम भौंचक्के रह गए |
एक नामी अपराधी (जो तत्कालीन प्रधानमंत्री का रिश्तेदार बताया जाता था) की जेल में हैसियत देखकर हम दंग रह गए थे | तिहाड़ में देश को चुना लगाने वाले उस अपराधी को दो मंजिला बंगलानुमा घर दिया हुआ था | इतना ही नहीं उसे यह भी छुट थी कि वह सवेरे 9 बजे जेल से बाहर जाता और शाम को 6 बजे तफरी करके वापस आता बिना किसी अदालती पेशी के | इस गैरकानूनी छुट पर हमलोगों ने अपने अल्पकालीन-प्रवास में कुछ दिनों के लिए प्रतिबन्ध लगवा दिया था | कौन था वह चूड़ीदार पायजामा शेरवानी पहनने वाला सतफुटा कुख्यात रिश्तेदार !
(असमाप्य)