मृदु मन के मेघ सघन में सुरधनु लहराया,
सुदूर देश से प्रियतम का संदेशा आया।
रोम रोम अक्षत बना,संदली हो गयी काया,
मन उपवन में देव शर ने प्रेम पुष्प बरसाया।
दिनमणि से उज्ज्वल प्रीत नवचेतना का उजास,
तम के वृहत वृत में खद्योत का जगमग साया।
रातरानी का सुवास,बेला ने अंग-अंग महकाया,
वेदनाओं के अंजन-धार को धवल मसि ने मिटाया।
निस्पंद पड़ी काया में गिरी स्वाति की इक बूँद,
विरह घिरी विभावरी ने स्पंद मिलन का पाया।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश