(संवाददाता मोहम्मद सैफ साबरी)
क़ुर्बानी का जानवर बे ऐब और तंदरुस्त होना ज़रूरी है
लखनऊ। (ईदुल अज़हा पर विशेष) इस्लाम में क़ुर्बानी की बड़ी अहमियत है। इस्लामी साल का महीना ही क़ुर्बानी से शुरु होता है। और खत्म भी क़ुर्बानी पर होता है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के नज़दीक क़ुर्बानी का अमल बहुत ही प्यारा अमल है। अब कुर्बानी चाहे पैसे की हो, जानवर की हो या फिर ख्वाहिशात की। कुर्बानी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के नज़दीक बहुत पसंद दीदा अमल है। लेकिन कुर्बानी अल्लाह पाक की रज़ा के लिए होना चाहिए ना कि आपनी अना या ज़ात के लिए, क़ुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्स्लां की सुन्नत है। हज़रत इब्राहिम अल्लाह के पैगंबर हैं। आपने तमाम उम्र अल्लाह के बन्दों की खिदमत में गुजार दी, करीब 90 साल की उम्र तक उनके कोई संतान नहीं हुई। तब उन्होंने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में हाथों को बुलंद कर दुआ की। और पर्वर्दिगार ने अपने दोस्त यानी खलील की दुआ को क़ुबूल कर उन्हें चाँद-सा बेटा इस्माइल अलैहिस्स्लां की शक्ल में अता फरमाया।
आपको बताते चलें कि इस्माईल थोडे से बड़े हुए थे कि हज़रत इब्राहिम को ख्वाब में अल्लाह का हुकुम हुआ कि इब्राहीम क़ुर्बानी करो, रिवायत के मुताबिक़ इब्राहीम अलैहिस्स्लाम ने 100 बकरे क़ुर्बान कर दिये फिर ख्वाब आया की क़ुर्बानी करो आपने फिर 100 ऊंट क़ुर्बान किये आपने फिर ख्वाब देखा अपनी सबसे प्यारी चाहने वाली चीज़ की कुर्बानी दो, यानी अपने बेटे को क़ुर्बान करो, तब इब्राहीम अलैहिस्स्लां ने अपने बेटे इस्माइल को तय्यार किया। और क़ुर्बानी के लिये जंगल की तरफ सुनसान मक़ाम पर ले गए और आपनी तथा अपने बेटे की आंख पर पट्टी बान्ध कर छुरी चला दी। यह अदा उस रब्बुल इज़्ज़त को इतनी पसन्द आई कि उसने क़यामत तक के लिये इसको हर साहिबे इस्ततात यानी हर पैसे वाले पर वाजिब क़रार दे दिया,तब से आज तक पूरी दुनिया के मुसलमान इस सुन्नत को हर साल अदा करते हैं।
क़ुर्बानी के इस अमल से दुनिया में यह पैगाम भी जाता है। की क़ुर्बानी एक अच्छी चीज़ है। बशर्ते वो दिखावा ना होकर सिर्फ और सिर्फ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के लिये हो,और क़ुर्बानी सिर्फ जानवर की ही नहीं,नफ्स की भी हो क़ुर्बानी ख्वाहिशात की भी ही तभी अल्लाह पाक के नज़दीक क़ाबिले क़ुबूल होगी, कुछ मुस्लिम परिवारों में कुर्बानी के लिए बकरे को पालपोसकर बड़ा भी किया जाता है। और फिर ईदुल अज़हा यानी बकरीद पर उसकी कुर्बानी दी जाती है। और जो लोग बकरे को नहीं पाल पाते हैं। और फिर भी उन्हें कुर्बानी देनी चाहते है। उन्हें कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर लाना होता है। ताकि उस बकरे से उन्हें लगाव हो जाए, कुर्बानी का एक अहम बात को अक्सर लोग भूल जाते हैं। अपनी सहूलियत के हिसाब से कुर्बानी करना चाहिए कुर्बानी का सबसे पहला मसला, जिस जगह पर जानवर को कुर्बान किया जाए वह जगह पूरी तरीके साफ कर ली जाए फिर छोरी में धार तेज कर ली जाए कुर्बानी के जानवर का खून गड्ढे में जाए नाली में कतई नहीं जाना चाहिए या फिर बालू मिट्टी में हो कुर्बानी के जानवर का खून नाली में बहना क़ुर्बानी की बे अदबी है।
कुर्बानी अल्लाह की रज़ा के लिए होनी चाहिए। कुर्बानी का जानवर खूबसूरत और तंदुरुस्त एवं बे ऐब होना चाहिए। जिस पर कुर्बानी वाजिब है। कुर्बानी का जानवर दो या चार दांत का होना चाहिए। लेकिन लोग अपना वक्त बचाने एवं मात्र औपचारिकता निभाने के लिए पत्ती यानी हिस्सा ले लेते हैं। और जानवर तक नहीं देखते, जबकि जिस जानवर में पत्ती ली गई है उस जानवर को देखना ज़रूरी है।