शैवालिनी

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क   

मैं शैवालिनी निरंतर 

बहती रहती हूँ 

पालती सृष्टि 

पर कभी तुमने 

मेरी विसंगतियों को 

की है कम करने की कोशिश 

तुम्हारे मन से लेकर 

तन को करती परिमार्जित 

शनेः शनेः ह्रास हो रहा है मेरा भी 

यदि अभी भी नही चेते 

तो एक दिन 

मेरे साथ तुम्हारी 

समाप्ति भी निश्चित है 

सावित्री शर्मा “सवि “

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