बहुत कुछ समझने के बाद मैं निश्चित हो चुका था कि मोबाइल ही एक ऐसा पावन प्रसाद है, जो पापों से मुक्ति दिलाने में सबसे उपयुक्त है। इस डिवाइस का संस्कृतसम्मत नाम चरवाणी है, जिससे प्रकट होता है कि यह नारद या मंथरा की भाँति इसकी पौराणिकता भी काफी संचारी और संप्रेषणीय है। यह स्थिति के अनुकूल नहीं बल्कि स्थितियाँ इसके अनुकूल काम करती हैं। यह दुश्मनों को उतना ही प्रिय है जितना कि मित्रों को।
खुशी की बात है कि यह पावन प्रसाद इंटरनेट और वॉयस कॉल के गुड़-चने से बना है। यह इतना बढ़िया काम करता है कि आपको कोई दूसरा काम करने ही नहीं देता। यह हमें कैमरे से देखता है और स्पीकर से सुनता है। इसके देखने का परिणाम यह हुआ कि पाउट बनाते-बनाते मुँह बंदर बनकर रह गया है। मैं उससे जब भी पूछता कि अपना टाइम कब आएगा तो उसका बड़ा क्यूट सा उत्तर आता कि घंटा लेकर आया था जो घंटा लेकर जाएगा। सुन, तेरा टाइम आएगा।
यह मोबाइल नाव नहीं है जो पानी में तैरने का गुर सिखाता हो। बल्कि यह हमें एक पल बिना मोबाइल के तड़पना और मरना सिखाता है। एक मोबाइल दूसरे मोबाइल से हमेशा चिढ़ता और जलता है। कभी उसके कैमरे से तो कभी उसके रैम से। कभी स्टोरेज से तो कभी उसके बैटरी बैकप से। कभी कुछ तो कभी कुछ।
इनमें भी जात-पात, भाषा लिंग की तरह गलाकाट प्रतियोगिता होती है। अंत में चलकर यह पता चलता है कि यह तो उभयलिंगी होता है और सदैव नर-मादा दोनों के बाहों में खेलता है और समय देखकर स्विच ऑफ हो जाता है। ऐसे पावन प्रसाद का सेवन करने से जो पद मिलेगा उससे घरवालों, बाहरवालों और अधबीच वालों से पूरी तरह मुक्ति मिल जाएगी।
इसमें प्रेरणा और चरित्र-बल होता है, वह सर्वथा हमारी संस्कृति के अनुकूल होता है। शार्ट विडियो देखने से टाइमपास करने और दुष्ट कार्यों से ध्यान भटकाने में अत्यंत सहायक है। यहाँ चरित्र की पहचान विडियो में फूहड़ता देखने के बावजूद भी अश्लील हरकत करने से बचता रहता है। इसका पूरा श्रेय क्राइम पेट्रोल, सावधान इंडिया जैसे प्रसाद रूपी कार्यक्रमों को जाता है। पावन मोबाइल का प्रसाद इतना पवित्र होता है कि मुल्क में बैठे लोगों के काम छीनकर बेरोजगार बनाने और बेरोजगारों को सोशल मीडिया का सेवक बनाकर ग्यारह-ग्यारह लोगों में शेयर एंड फॉर्वर्ड का खेल खेलने में ठेल देता है।
इस तरह यहाँ जितने हाथ नहीं हैं उससे ज्यादा मोबाइल है। एक और बात जो इस संदर्भ में जरूरी है, वह यह कि राष्ट्रीय फल, फूल के साथ प्रसाद को स्थान दिया जाए। सरकार का कायदा है कि लोग जब भी भुखमरी के बारे में बात करें तो उन्हें हीरो-हिरोइन लव अफेयरों में उलझा कर रखें।। उन्हें मुद्दाविहीन बनाएँ। यह काम केवल एक ही प्रसाद कर सकता है जिसका नाम है – मोबाइल। आज बच्चा बाद में जन्म लेता है पहले मोबाइल माँगता है। माँगने की इस प्रक्रिया में वह कब लूडो चैंपियन बन जाता है कि किसी को पता ही नहीं चलता। फिर जिंदगी भर सरकारते रहो अपनी गोटियाँ।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657