गुरु सूरज है,चाँद है,गुरु तो है संवेग।
अपने शिष्यों को सदा,देता जो शुभ नेग।।
ज्ञान,मान,नव शान दे,दिखलाए जो राह।
शिष्यों का निर्माण कर,पाता है गुरु वाह।।
गुरु देता है शिष्य को,सत्य संग आलोक।
बने शिष्य उल्लासमय,तजकर सारा शोक।।
गुरु करके नित त्याग को,बनता सदा महान।
गुरु से सदा समाज को,मिलती चोखी शान।।
गुरु के प्रखर प्रताप से,रोशन होता देश।
गुरु-वंदन नित ही करो,ले साधक का वेश।।
गुुरु तो नित उजियार है,मारे जो अँधियार।
गुरुकृपा से दिव्य हो,शिष्यों का संसार।।
गुरु जीवन का सार है,गुरु जीवन का गीत।
गुरु से तो हर शिष्य को,मिलती है नित जीत।।
गुरु आशा,विश्वास है,गुरु है नव उत्साह।
हर युग में गुरु को मिली,वाह-वाह अरु वाह।।
गुरु ईश्वर का रूप है,गुरु विस्तृत आकाश।
जो बिन गुरु रहता यहाँ,उसका होता नाश।।
-प्रो0 (डॉ0) शरद नारायण खरे