"सद्गुरु की महिमा अनन्त"

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

मनुष्य के जीवन में गुरु का बहुत महत्व और उपयोगी होता है।गुरु के बिना यह जीवन अंधकारमय हो जाता है।इस जीवन को ज्ञान का प्रकाश  नही मिल पाता।यह जीवन घोर अंधकारमय हो जाता है।जन्म से लेकर मरण तक हर मनुष्य को गुरु की आवश्यकता होती है।गुरु ही एक ऐसा व्यक्तित्त्व है कि वह सोला प्रकार के संस्कार सहित चार प्रकार के आश्रम बाल-आश्रम, गृहस्थ-आश्रम, सन्यास-आश्रम,वानप्रस्थ-आश्रम।

चार प्रकार के कूटनीति-साम, दाम, दण्ड, भेद।चार प्रकार के पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ ,काम, मोक्ष से परिचय कराता है। इसके अलावा जीवन के गुढ़ रहस्यों का भी वह  दर्शन कराता है।ईश्वर,ब्रम्ह,जगत,आत्मा,परमात्मा के अलौकिक रहस्यों का उद्घाटन करता है। ऐसे महान व्यक्तितव को सद्गुरु या सच्चा गुरु कहा जाता है। गुरु जीवन का उद्देश्य,जीवन का धर्म, और ईस जीवन का मोक्ष कैसे होगा ? इन सब के बारे में ज्ञान देता है। और ऐसे गुरु को ही सद्गुरु की उपाधि दी जाती है

तभी तो कहा गया है- 

"गुरु बनाओ जान के ,पानी पिओ छान के" गुरु उन्हें कहा जाता है जो हमे सत्य के मार्ग पर ले जाए।गुरु उन्हें कहा जाता है जो हमे अज्ञानता के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश जीवन मे भर दे।

गुरु का शाब्दिक अर्थ भी यही है।गुरु दो शब्दों से मिल कर बना है " गु " और " रु "। 'गु'  का तातपर्य  है 'अंधकार' और 'रु' का तातपर्य है 'प्रकाश'।दोनों शब्दों को मिलाकर ही गुरु बना।अर्थात जो हमारी अज्ञानता के अंधकार को दूर करके ज्ञान के प्रकाश को आलोकित कर दे वही गुरु है।

तभी तो कहा गया है-

"गुरु ज्ञान है, गुरु प्रकाश है।

गुरु आस है, गुरु विश्वास है।।"

इसी प्रकार यह भी कहा गया कि-

गुरु समान दाता नहीं,

याचक शीष समान।

तीन लोक की सम्पदा,

सो गुरु दीन्ही दान॥

"गुरु से बढ़कर ज्ञानी,

और गुरु से बढ़कर दानी

इस  संसार में कोई और नही होता।"

गुरु ज्ञान के भंडार होते हैं,तभी तो इनको संसार में सबसे बड़ा ज्ञानी माना जाता है।और उस सारे ज्ञान के भंडार को वह अपने शिष्यों सहित संसार को बांटता है।इसी कारण इनको सबसे बड़ा दानी और ज्ञानी कहा गया है।

गुरु की  वाणी अमृत के समान मानी जाती है।,जिस वाणी से हमारी जिंदगी में सुख शांति  आ जाती है।गुरु के आशीर्वाद में

मोक्ष् के दुवार होते हैं।तभी तो हम सब गुरु के शरण में जाते है।और अपने जीवन को धन्य बनाते हैं।इसीलिए तो कबीर ने कहा है-

"यह तन विष की बेलरी,

गुरु अमृत की खान।

सीस दिये जो गुरु मिलै,

तो भी सस्ता जान॥"

इस संसार मे नाना प्रकार के गुरु होते हैं।

जिनका अलग-अलग मरम और महत्व होता है।

जैसे-कुल-गुरु, धर्म- गुरु,शिक्षा- गुरु,

राजनीति -गुरु,आदि-आदि।पर सभी गुरुओं का एकमात्र उद्देश्य रहता है। और वो है अपने शिष्य को सदमार्ग पर ले जाके मोक्ष् को प्रदान करे।

गुरु की महिमा अपरम्पार होती है,अनन्त होता है।जिसकी महिमा की कोई सीमा नही रहती।जिनकी कृपा दृष्टि  अनन्त होती है।और अज्ञानता के पर्दा को हटा कर ज्ञान के चक्षु को उद्घाटन कर देते हैं।और सदमार्ग की ओर ले जाते हैं।

तभी तो कबीर दास ने कहा है-

"सद्गुरु के महिमा अनन्त,

अनन्त दिखावनहार।

लोचन अनन्त उघाडिया,

अनन्त दिखावनहार।।"

इस प्रकार से गुरु अपने प्रत्येक शिष्य के मन  से संसय ,शंका,असमंजस को भी दूर कर देते हैं। इस संसार मे  जन्म लेकर मनुष्य  मोह, माया मत्सर के चक्कर म पड़ जाता है,और शांति के खोज में यहाँ-वहाँ भटकता फिरता है।

फिर भी उसको भगवान नही  मिल पाते।तब ऐसे समय मे  गुरु अपने शिष्य को भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है इसका राह दिखाते हैं।तभी तो कबीर जी कहते हैं-

"गुरु गोविंद दोऊ खड़े

का के लागू पाय।

बलिहारी गुरु आपनो

गोविंद दियो बताय।।"

इस प्रकार से  गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर  मैं गुरु के महिमा उनके उपकार, आशीर्वाद को शत-शत नमन करता हूँ।जिनके आशीर्वाद से  जन्म-जन्मांतर के सभी पाप धुल जाते हैं।

रचना-

अशोक पटेल  " आशु "

व्याख्याता-हिंदी

तुस्मा,शिवरीनारायण (छ ग)