ग़ज़ल : भारत में मेरे ऐसा नज़ारा दिखाई दे

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  


भारत में मेरे ऐसा नज़ारा दिखाई दे

भूखा कोई मिले कोई नंगा दिखाई दे


उल्फ़त में तो कुछ और न जाना दिखाई दे

शोला दिखाई दे कभी नग़्मा दिखाई दे


देखे हैं हमने फूल पे चलते से वो कदम

हम चल पड़े तो राह में काँटा दिखाई दे


शायद ये राह यार मुहब्बत की राह है

जो भी चला इसी पे वो बिखरा दिखाई दे


आग़ाज़ गर तू कर ले मुहब्बत से जानेमन

अंजाम ज़िंदगी का न ज़ाया दिखाई दे


आवारगी को शहद भी हाला दिखाई दे

बहकी हुई जवानी में क्या-क्या दिखाई दे


मुश्ताक़ मुझसा कोई परिंदा कहीं नहीं

पर खोल के उड़ू जहाँ सहरा दिखाई दे


समझे हर एक खुद को ही मुस्लेह जहान का

फिर क्यूँ जहान में कोई रोता दिखाई दे


ऐसा ख़फ़ीफ़ आज सियासत में बैठा है

अख़्लाक़ का नक़ाब जो पहना दिखाई दे


प्रज्ञा देवले✍️