सात दिवसीय श्रीराम कथा में श्रद्धालु भगवान की महिमा का बखान सुन हुए भावविभोर
लखनऊ। प्रभु का प्रतिदिन स्मरण करने वाले सनातन प्राणी को संताप के समय भगवान की शरणागति का लाभ स्वयं मिला करता है। भगवान कभी भी अपने भक्त को संकट के समय निराश्रय का दुख नही दिया करते। प्रभु के प्रति हमारा ध्यान निर्मल भाव से सुख और दुख की चिन्ता किये बगैर शाश्वत् होना चाहिये। उक्त श्रीप्रवचन महामण्डलेश्वर आचार्य अभयानंद सरस्वती जी महराज ने अपने श्रीमुख से प्रकट किये।
गोमती नगर के अर्न्तराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान सभागार में सात दिवसीय श्रीराम कथा के समापन पर महामण्डलेश्वर अभयानंद सरस्वती जी महराज ने कहा कि शरीर से परमात्मा की और सन्तों की सेवा तथा मन से भगवान से प्रेम और बुद्धि से अपने आत्म स्वरूप को जानने समझने का प्रयास प्राणी का कर्तव्य है। उन्होनें कहा कि सच्चिदानंद भगवान की अनुकम्पा सदैव प्राणी के जीवन को धवल धर्म के पथ का मार्ग प्रशस्त किया करती है।
व्यासपीठ से सरस्वती जी महराज ने कहा कि जन्म-जन्मांतर के पुण्य का संग्रह ही सत्संग का सुफल प्रदान किया करता है। उन्होनें कहा कि भगवत भजन और भगवत नाम उच्चारण का भी सुफल उसी प्राणी को मिला करता है जो मन से भगवान के प्रति आस्थावान हुआ करता है। संचालन पं. आलोक जी व संयोजन सेवानिवृत्त आईएएस रमेशचंद्र मिश्र तथा अवध बार एसोशिएसन के पूर्व महामंत्री पं. रामसेवक त्रिपाठी ने किया।
व्यासपीठ से अभयानंद सरस्वती जी महराज ने समाजसेवी प्रकाशचंद्र मिश्र, रूरल बार एसोशिएसन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानप्रकाश शुक्ल, समाजविद् सरला त्रिपाठी, वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल त्रिपाठी महेश, प्रणव अग्निहोत्री, केके शुक्ल, डा. आलोक द्विवेदी, राजकुमार द्विवेदी, प्यारेमोहन चौबे को श्रीराम पट्टिका प्रदान कर शुभाशीष सौंपा। विश्राम अवसर पर श्रद्धालुओं ने श्रीराम संकीर्तन के साथ व्यास पूजन किया।