बच्चे मन के सच्चे- बाल साहित्य

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

सरकारी हॉस्पिटल के तपेदिक विभाग में बैठे दो डॉक्टर आपस में बात कर रहे होते हैं | एक ने पूछा कि डॉक्टर साहब अपने जैतपुर में विजय नाम का मरीज कहां रहता है | जवाब में डॉ० राजवीर जी ने बताया कि पहले तो वह गजब की ठेली लगाता था | लेकिन गर्मी के दिनों में पुलिस थाने के पास गन्ने के रस की दुकान लगा रहा है | उस मरीज की ज़रूरी जानकारी जुटाकर डॉ० पुनीत पुलिस थाने की तरफ रवाना हो गए |

डॉ० ने थाने के पास जाकर इधर- उधर देखा! वहा एक गन्ने की ठेल पर 11 साल का बच्चा गन्ने की मशीन में मुड़े हुऐ गन्ने ठूंसने की कोशिश कर रहा था | पुनीत ने पूछा कि यह दुकान विजय की है | पहले तो उस बच्चे ने उनको शक की निगाहों से देखा ! कुछ देर बाद पूछा कि क्या काम था ? डॉ० ने कहा मैं सरकारी हॉस्पिटल से आया हूं | तुम्हारे पिताजी का इलाज चल रहा है | बच्चे को यह अच्छी तरह पता था कि उसके पिता जी अक्सर बीमार रहते है | बच्चे ने डॉ० साहब आप अभी रुको मैं पिता जी को घर से बुला कर लाता हूं | डॉ० ने पूछा फिर तुम्हारी दुकान पर कौन रहेगा? उस मासूम बच्चे ने कहा मेरा बड़ा भाई रोहित है वो दूकान पर बैठेगा | जैसे ही बच्चे ने भैया की आवाज लगाई एक और बच्चा तुरन्त आ गया | छोटे वाले ने बड़े से कहा कि सरकारी हॉस्पिटल से आए हैं जहां से अपने पिता जी की दवाई चल रही हैं | डॉ० ने कहा आप यहां दुकान पर मत बुलाओ | मैं आपके साथ आपके घर चल रहा हूं | उसने कहा ठीक है समय कोई 1:00 बजे का रहा होगा खड़ी दोपहरी के करने बहुत गर्मी थी |

लगभग दो मील की दूरी चलने के बाद वो दोनों विजय के घर पहुंच गए | डॉक्टर ने पूछा विजय घर पर है तो विजय बाहर आकर नमस्कार लेकर डाक साहब को कुर्सी पर बैठने को कहा | डॉक्टर ने परिवार के सभी सदस्यों की एक - एक करके काउंसलिंग की | विजय जो कि तपेदिक की बिमारी से ग्रषित होने के कारण बहुत कमजोर था | डॉक्टर ने उसको खाने पीने एवं दवा के बारे में बता कर कहा अब चलते है | दवा समय से खाते रहना एक भी दिन का दवा मिस मत करना हम हर महीने आपके घर आते रहेंगे | विजय ने कहा डॉक्टर से कहा साहब खाना खा लो |डॉक्टर ने फिर कभी की कहकर घर से निकल गया | बाजार में देखा एक और ठेले वाला जूस बेच रहा था | उसको भाव पूछा तो बताया कि चालीस रुपए प्रति किलो का भाव है | डॉ० थोड़े से लालच के कारण वह उसी बच्चे की दुकान पर पहुंच कहा कि क्या भाव है जूस? तो बच्चों ने सच्चे मन से कहा तीस रुपए किलो है साहब! उन्ह दोनों बच्चों की आंखों में आशा थी कि उनके पिता जी को डॉक्टर पुनीत अब ठीक करेंगे | डॉ पुनीत ने जूस पिया | रुपए दिए तो बच्चों ने लेने से मना करते हुऐ कहा आप हमारे पिता जी को ठीक कर दो रुपयों की कोई बात नहीं|

डॉक्टर ने अपने मन में ही सोच रहे थे कि इन बच्चों को अपने पिता की कितनी फिक्र है | साफ मन के बच्चे है |

डॉक्टर ने अपने मन में प्रण लिया | ये बच्चे अपने पिता की बीमारी के कारण स्कूल जानें से वंचित रहे जा रहे हैं | इन बच्चों के पिता की बीमारी को ठीक करके बच्चों को स्कूल जाने पर मेरे ह्रदय को अधिक खुशी मिलेगी | बच्चों कहा अपना ध्यान रखना | डॉक्टर आगे को चल दिया | देखते हे जो बच्चों ने सच्चे मन से डॉक्टर की खुशामद की | उन बच्चों की आशाओं पर डॉक्टर खरा उतरता है या फिर नही |

आखिर बच्चे मन के सच्चे होते हैं.....................

-अवधेश कुमार निषाद मझवार

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