बचपन से देखा था उनको
प्यार की वो तो मूरत थी
सब बच्चों पर स्नेह लुटाती
ममता की वो मूरत थी।
मां समान मासी थी वह तो
प्यार बहुत लूटाती थी।
नानी से व्यंजन बनवा ,
पहले तैयारी करवाती थी।
जो जिसको था अच्छा लगता
भोज वहीं पकवाती थी।
कभी कलाकंद कभी बर्फी
मक्खन रबड़ी दूध पिलाती थी
ममता की मूरत थी वो,
भागवत भजन सिखाती थी।
भजन पूजन करती निसदिन
हरि को बहुत मनाती थी।
कभी कढ़ी चावल पकाती,
पुलाव भी हमें खिलाती थी।
हाथों के स्पर्श से अपने ,
छूकर सब बतलाती थी।
दिखता नहीं था फिर भी उनको
काम सुधडता से कर जाती थी।
अलमारी उनकी व्यवस्थित रहती
हिसाब भी वो कर जाती थी।
स्नेह सभी पर समान लुटाती,
हंसकर बातें कर जाती थी।
इज्जत सब उनकी करते ,
गुणों से अपने जानी जाती थीं।
नमन है उनको आज मेरा ,
जो हृदय में मेरे बसती हैं।
क्या कहूं मैं उनकी बातें,
प्यार बहुत ही करती थी।
चरणो में उनको वास दे ईश्वर,
वो पुण्य प्रतापी लगती थी
बुरा किसी का ना चाहे वो,
प्रभु चरण की दासी थी।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा