बिटिया! ओ बिटिया! यह क्या निपोरा बना दिया। भला कोई इसे हलवा कहते हैं? इसे अच्छा-खासा चंगा आदमी खा ले तो पल में प्राण पखेरू हो जाए। ऐसा पकवान तो कोई अपने दुश्मन को भी न खिलाए। इसमें तुमने क्या मिलाकर बनाया है?
माँ आप भी कमाल करती हैं। आप जैसा कहती है मैं वही तो करती हूँ। कभी मैंने आपका कहा टाला है। लकीर की फकीर हूँ। मक्खी टू मक्खी काम करती हूँ। फिर भी आप हमें जब देखो तब डाँटती रहती हैं।
माँ ने चीढ़ते हुए कहा - तू ही यह अमृत खा कर देख। तब बताना क्या बनाया है। तब मान लूंगी कि तू मेरा कहाँ मानती है। वैसे बता इसे तूने बनाया कैसे हैं?
बिटिया ने कहा - पहले मैंने कढ़ाई ली। उसमें थोड़ा पानी गर्म किया। फिर उसमें काली मिर्च, लवंग, इलायची, दालचीनी पत्ता, मुलेठी, आजवाइन, हल्दी, थोड़ा नमक और ढेर सारी सूजी मिलाकर उस पर शक्कर डाल दी। थोड़ी देर पकाया और बन गया हलवा।
माँ ने माथा पीटते हुए कहा - धन्य हो तुम्हारी ज्ञान।! भला कोई हलवा के लिए गर्म मसाले और अगड़म-बगड़म चीजों का इस्तेमाल करता है। अच्छा हुआ अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई वरना ससुराल में हमारी नाक कटवा देती। गधी कहीं की।
मां आप मुझे गधी न कहें। आप कोरोना से जुड़ी हर खबर पढ़ती है, देखती हैं और इस कान, उस कान सबकी बातें सुनती हैं। कभी आप काली मिर्च, आजवाइन, लवंग का काढ़ा पिलाती हैं तो कभी सी कॉन्प्लेक्स तो कभी बी कांप्लेक्स की गोलियां खिलाती हैं। कौवा कान ले गया की तर्ज पर जिससे जो सुना वह हम पर आजमाना शुरू कर देती हैं। कभी सोचा है ऐसा करने से इन सबका हम पर क्या असर पड़ता है? आप तो हम सब का ख्याल रखने के चक्कर में खुद तो पीती नहीं हैं। आपको भला कैसे पता चलेगा? इसीलिए मैंने आपको सबक सिखाने के लिए ऐसा हलवा बनाया था। यह सुन मां का मुंह छोटा हो गया।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’