है प्रचंड,वो अनंग,शक्तिरूपा वरदहस्त,
प्रबुद्ध,शुद्ध,पार्वतीप्रिया,नीलकंठ।
सती अपमान से क्षुभित, शिव शम्भु के खुले नेत्र,
भस्म दक्ष यत्र तत्र विक्षप्त हवन कुंड का क्षेत्र।
प्रिया वियोग से विकल किया तांडव भयंकर,
समाधिविलीन अर्धनारीश्वर,सती बिना न शंकर।
शिवाय शिवाय सती शिवाय,शिव सती एकाकार है,
नहीं पृथक,है सकल,जगत का वो आधार है।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)