लगभग दो साल के बाद सभी विद्यालय खुल रहे हैं, कुछ माता-पिता और बच्चों में अत्याधिक उत्साह है, मगर कुछ बच्चे नीरस दिखाई दे रहे हैं।
कारण??
जो बहुत छोटे बच्चे जिनकी अभी प्राथमिक शिक्षा शुरू ही नहीं हुई और कोरोना की मार पड़ गई, उन मासूम बच्चों ने बाहर की दुनिया देखी ही नहीं, कि अन्दर ही बंध कर रह गए।
जब कोई बच्चा 2 से 3 साल की उम्र का होता है उसे प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल भेजा जाता है।
ये प्राथमिक शिक्षा क्या है??
इसे कब और कैसे बच्चे को दें?
प्राथमिक शिक्षा अर्थात बच्चे को पुस्तक इत्यादि नहीं पढ़ाई जाती, उसे मात्र घर से बाहर अन्य बच्चों के संग रह कर अपनी हर वस्तु बांटना अर्थात शेयर करना सिखाना, छोटे- बड़े से बात करना सिखाना, अर्थात स्कूल में जाने के लिए तैयार करना।
लेकिन क्या ये प्राथमिक शिक्षा केवल स्कूल में ही दी जाती है?
बच्चे की प्राथमिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है। लेकिन अधिकतर माता-पिता प्राथमिक शिक्षा का अर्थ कुछ अधिक समझने लगे हैं, उन्हें लगता है जब बच्चा पहली बार स्कूल में कदम रखे तो वो सबसे ज्यादा होशियार यानि कि इंटेलिजेंट लगे।
दो साल के बच्चे को 5-7 कविताएं ( Ryms) ए फार एप्पल, वगैरा-वगैरा सिखा देंगे।
अच्छी बात है, बच्चे को सिखाना भी चाहिए, लेकिन उसके लिए भी एक दायरा होना चाहिए, जो बच्चा समझ सके वही सिखाएं, ना कि उस पर अपनी सोच थोपे, इस तरह से बच्चे जिद्दी हो जाते हैं।
जैसा कि अक्सर माता-पिता जैसे ही स्कूल में कदम रखेंगे, सामने अध्यापक- अध्यापिका को देखते ही बच्चे को जबरन कहेंगे say good morning mam (sir) लेकिन उस पर अगर बच्चे ने good morning बोल दिया तो good baby नहीं तो उसे वहीं डांटना शुरू, bad manners, see this baby is saying good morning, he or she is a good baby, ext. ext.
अब बच्चे को पता होता है कि दूसरे को good baby नहीं बोलने देना, क्योंकि उसे सिखाया गया कि वो गुड बेबी है, बस वो रोनी सूरत बना लेगा।
और जबकि बच्चा उन्हें पहली बार देख कर अनजान महसूस करता है, माना कुछ बच्चे पहले ही दिन अपने टीचर्स के साथ घुल मिल जाते हैं, लेकिन सब बच्चे एक जैसे नहीं होते।
फिर उस पर एक और तथ्य, बच्चा रोता है कि मम्मा आप छोड़कर मत जाओ, मुझे नहीं बैठना यहां।
माता-पिता, " देखो सब बच्चे चुपचाप बैठे हैं और तुम रो रहे हो वेरी बैड बेबी, अच्छे बच्चे रोते नहीं।
2 साल का छोटा सा बच्चा मां से अलग होते हुए तो रोएगा ही, थोड़ा वक्त दो उसको। उसे प्यार से समझाया जाए बताया जाए ।
प्राथमिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है, उन्हें थोड़ा सा खुद कुछ बनने दें।
अपनी मर्ज़ी से अपने मुताबिक उन्हें ज़बरदस्ती ना बनाएं।
केवल स्कूल में कदम रखते ही good morning mam, या hallo mam, m Sam, I live in ---- ( city name) I have --- car. केवल इस तरह की बातें ही शिक्षा नहीं कहलाती।
जब बच्चा पैदा होता है, उसके लिए ये दुनिया अनजान होती है, वह धीरे-धीरे सबको पहचानता है।
इसी तरह स्कूल की दुनिया भी उसके लिए नई होती है, वो इसे धीरे-धीरे पहचानना सीखेगा।
उसे खुद सीखने दें, उसे अपना रास्ता ढूंढने दें, हाथ पकड़ कर अवश्य साथ रहे मार्गदर्शन के लिए, लेकिन बांह खींच कर इधर-ऊधर मत धकेले, बच्चा साथ और सहारा होते हुए भी असहाय महसूस करता है।
आशा है माता-पिता अपने बच्चों को समझने की कोशिश करेंगे और उनका सही मार्गदर्शन करेंगे।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)