तुमने मुझे लिखा
मैंने तुमको ,
आपस में कविताएं बदलकर भी
हम स्वयं को पढ़ सकते हैं !!
अधूरे तुम भी रहे
पूरा मैं भी कहां हो सकी,
सझा करके "अपने-अपने अधूरेपन"
हम पूर्ण हो सकते हैं!!
तुमने स्वीकारा चुप रहना
मैंने कुछ भी न बोलना ,
अपने मौन कवच में भी
हम बहुत कुछ कह सकते हैं !!
तुम्हारी अपनी व्यस्तताएं
मेरी अपनी रही ,
यूं उलझे हुए से हम
एक-दूसरे को सुलझा सकते हैं !!
कहीं तुम उदास दिखे
मैं भी थोड़ी अनमनी ,
हज़ारों तरीके हैं
अपनी-अपनी शिकायतें बांट सकते हैं !!
तुम्हारी अपनी सीमाएं
मेरे भी कुछ दायरे ,
अपने-अपने वृत्तों में हम
कोई नया सिरा ख़ोज सकते हैं !!
तुमने अपनी तरह सोचा
मैंने अपनी तरह ,
कल्पनाओं का एक नया क्षितिज गढ़कर
हम दोनों वहां मिल सकते हैं !!
हां माना.. क्षितिज एक भ्रम है
तो, भ्रम ही सही ,
अपने-अपने क्षितिज में हम
धरती-आसमान बन सकते हैं !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश