श्रम पर कविता

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

श्रमेव जयते कहते कहते थक गयी जुबान सारी है,

श्रम का कत्ल हो रहा, अब मजदूरों की बारी है,

कानून छांटकर गर्दन पर तलवार मारी हैं,

गरीबों की नहीं, सरकार अमीरों की रखवारी हैं।।

श्रम जीने की आक्सीजन है, इसी से मिलता भोजन हैं,

याने, घर की छप्पर है, मुस्कराते बीबी, बच्चों काआनंद हैं,

श्रम से घरबार भरापूरा परिवार कुनबा हमारा,

श्रम नहीं तो मरघट सा सूनसान जीवन सारा।।

श्रम सीरियल सा चलता है एक के बाद अंत तक,

जब श्रम खतम तो जीवन असफल हैं, मजबूर हैं,

चिंताओं से घिरा कुरूक्षेत्र या बंजर भूमि के समान हैं।।

इसीलिये श्रम से जीतो तन मन और सारा संसार,

श्रम करने वालों की पूजा होती, मिलता ढेरों प्यार।।

                 -जयश्री वर्मा, (सेनि. शिक्षिका)

                     इंदौर, मध्यप्रदेश