नारी जीवन

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


इतने कोमल लघु आंचल से, 

मुझे संसार ढकना है। 

संस्कार के नाम पर मुझको, 

भट्ठी रूढ़ी में पकना है।


पोषित जीवन होता मुझसे, 

आकार रहित जल सी हूं। 

श्रद्धांजलि मेरे ही हाथों, 

स्व समाधि कमल दल सी हूं।


मर्यादा के नाम पर मुझको,

निज अस्तित्व भूलना है। 

नारी जाति नाम पर मुझको, 

बंधन में ही झूलना है। 


क्या खूब रचा परमपिता ने,

नीर पर आकार मेरा। 

भावनाओं का है समंदर,

क्रंदन ही आधार मेरा। 


यूं तो जीवन बुलबुला सा, 

हर मानव का अपना है। 

फिर भी नारी का जीवन तो,

बंधन है अभी सपना है 

बंधन है अभी सपना है।।


अंजनी द्विवेदी (काव्या)

देवरिया, उत्तर प्रदेश