संपूर्णता की तलाश में,
अपूर्ण मन की
अभिलाषा,स्वछंद
विचरण कर ने को,
मन की एक और
नई आशा,कभी अर्ध
विराम में खोया,
कभी पूर्ण विराम न बना,
स्वयं की तलाश में,
ये मन एक पल न सोया,
कभी वक्त का पहरा,
कभी अपनो के
साथ की आश,
जाने कब पूरी होंगी
स्वयं की तलाश?
सलोनी सिंह 'श्रदेश'
भागलपुर-बिहार
9939506968