मैंने कहा – अरे यार! तुम आदमी हो कि पैजामा? आज सूरज कहाँ से निकला है? मैं इससे पहले जब कभी रैलियों के बारे में कुछ कहता तुम भड़क उठते। भाषण देना शुरु कर देते कि यह रैली-वैली सब बेकार है। बड़े लोगों के टाइमपास करने का शगल और अपच को पचाने का बहाना है। और आज तुम्हीं रैलियों का नाम सुनकर विजयी स्वतंत्र उम्मीदवार की तरह नाच रहे हो। तबीयत तो ठीक है न? कहूँ तो डॉक्टर को बुला दूँ।
बदनसीबलाल अपनी उफान मारती खुशी से चहक उठे और कहने लगे – तुम्हें क्या पता रैलियों का सुख। इसके लिए भोगी बनना पड़ता है। वह भी सताने वाले लोगों का। रैली में अभिनेता या क्रिकेटर आते तो मैं नहीं जाता। आज जो आ रहे हैं उनसे मेरा गहरा नाता है। मेरी दुखती रग का वे ही इलाज हैं। वहाँ आने वालों को बखूबी पता है कि जंतर-मंतर कोई जलियांवाला बाग तो है नहीं कि उन्हें जनरल डायर भून देंगे। वे तो ऐसे हैं जो जनरल डायरों जैसे लोगों को अपनी बगल में दबाए घूमते हैं। अच्छा हुआ जनरल डायर अब नहीं रहा, अगर वह होता तो आज उसका जलियाँवाला बाग हो जाता। जो भी हो आज मैं इस रैली में उन लोगों से मिलूँगा जिनसे मुझे मिलने की एक अरसे से इच्छा थी। पता भी है यहाँ जनहित के बारे में बात करने वाले कैसे-कैसे लोग आने वाले हैं? सुनकर दंग रह जाओगे। रैली के मंच पर जितनी बड़ी मुंडी दिखायी देती है वह उतना ही बड़ा घपलेबाज होता है। नामधारी महाशय सारे भ्रष्टाचार के विरोध में फ़टाफ़ट आगे आकर बैठ जाते हैं जैसे कि उन्होंने बड़े तीर मार लिए हों। वहाँ वह आदमी भी आएगा जिसने मुझे ऐसा बैंक चेक दिया था, जो अब तक बाउंस हो रहा है। दुकान से सारा माल ले गया बदले में मेरे साथ बाउंस-बाउंस खेल रहा है। वहाँ पर ऐसा उद्योगपति भी आयेंगा जिसने चेक बाउंस कराने वाले की गारंटी दी थी। वह इस रैली में सिर्फ अपना भरत-रत्न पक्का कराने के लिए आ रहा है। वह कंपनियों के सिक्योरिटी मारने में सिद्धहस्त है। इस शहर के किसी भी महाशय से पूछ लो सभी उसकी गबन गाथा गा-गाकर सुनायेंगे। ऐसा नहीं है कि मुझे देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं है। विश्वास है। इतना कि पिछले साल मेरे रुपए डुबाने वाले एक बंदे पर केस ठोक दिया। हुआ क्या? ढाक के तीन पात। खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा आठाना। उल्टे केस में मेरा बहुत सारा पैसा लग गया । केस डालना घाटे का सौदा बन गया। वह महाशय भी इस रैली में आने वाले हैं। वहाँ वह कोरियर वाला भी आने वाला है जो अक्सर ज़्यादा पैसे लेकर भी कोरियर नहीं पहुंचाता। केवल बेवकूफ बनाता है। मेरा पड़ोसी वह भी वहीं मिलेगा जिसने मेरी जमीन में घुशकर नाजायज़ कमरा बना रखा है और उल्टे मुझे नाजायज कहता-फिरता है। वहाँ पर वे वकील भी मिलेंगे जो मुझसे और मेरे दुश्मनों के रुपए-पैसे ऐंठकर काले कोट के भीतर से अपने उज्ज्वल होने का प्रमाण पत्र देते फिरते हैं। ऐसे वकीलों को देखकर कभी-कभी लगता है कि न केवल उनका कोट काला होता है बल्कि उनका खून भी काला होता होगा। वहाँ पर वह संपादक भी मिलेगा जिसने पाँच साल बाद मुझे मेरी रचना यह कहकर लौटा दी कि आप इसका उपयोग अन्यत्र कर लें। अब मुझे ही याद नहीं कि मैंने उन्हें कौनसी रचना भेजी थी। आज इन सबसे मेरी भेंट होगी। इतना अच्छा अवसर मुझे जीवन में फिर कभी नहीं मिलेगा।
मैंने आँखे फांड़कर कहा – आज तो तेरी बल्ले-बल्ले है। जरूर तेरा नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा। एक रैली और इतने फसानों को निपटाकर कीर्तिमान स्थापित करने का यही अच्छा मौका है।
बदनसीबलाल हाँ में हाँ मिलाते हुए कहने लगा – आज या तो मैं अपनी समस्याएं हल करके लौटूँगा या फिर सदा के लिए इन फसानों को भूल जाऊँगा। अच्छा मैं चलता हूँ मेरी कामयाबी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
चरवाणीः 73 8657 8657