निसर्ग कुछ अनुपम भावों में
धारण कर रहा नव कलेवर।
कवि के निर्मल मन-दर्पण में,
काव्य-शिल्प है, वसंत स्वर।
रवि-किरण सरसों के खेत से,
पूछें,अर्थ नवल स्वर्ण रंग का।
आत्म-मुग्धा,सलज्ज धरा कहे,
फागुन में ये भाव अरूप का।
फसल पाकर कृषक विभोर,
कुटुंब संग,ठिठोली है मधुर।
कवि-मन प्रिय अपनत्व -बोध,
तन-भाव भूल,करें नया शोध।
उपवन में आम-बौर झूमते,
बयार बांटते मधुमय संदेश।
पत्र सुमन पल्लव कलित बिंब
निरख,वागीश में भावावेश।
कवि-मन सहज रूप उमड़ें
जो भाव, ह्रदय के गहन विन्दु।
पर बनें काव्य,जन-मन सजें
जैसे, ललना के अंचल में इंदु।
फागुन का अनुरागी कवि,
जल-धार में देखें जन-प्रबोध।
अमराई में,कोकिल-कुहुक,
प्रिय संदेश दें,निर्मल सुबोध।
चर-अचर रंग में देखें चैतन्य,
जोड़ें, उनमे निज व्यक्तित्व।
चित्रण करें,लोक-मंगल भाव,
प्रकृति-बिंब से जीवन-पूर्णत्व।
@ मीरा भारती,
पुणे, महाराष्ट्र।