भक्ति की साकार मूर्ति श्री राधा गौरांगिणी।
कृष्ण-रंग मेरा क्यों है मेघ-रूप है, श्याम।
सखी मेरी है राधा, सुभग - रंग कोमलांगिणी।
मात यशोदा देती आशीष-रंगारंग सुझाव,
रंग-उत्सव मनाओ रंगीन, निज प्रेम-भाव।
धरा से लेकर रंग हरित,नील रंग अम्बर से,
निसर्ग-रंग में रंग राधा को,ईश मुग्ध-भाव।
होली के रंग में रंगे मानव-तन मन
से, होता भेदभाव,अज्ञान तिरोहित।
कटुता की गांठ खुले, दूरी बने
निकटता,हास-उल्लास हो मुखरित।
धरा पर नव-संवत में,निसर्ग के रंग-
प्रकाश में,रंग-उत्सव का आयोजन।
होली नहीं बंधी युग-देश-धर्म विशेष,
सार्वभौम मनुज-पर्व है,रंग धूलिवंदन।
होलिका-दहन में बुराई संग,अहंकार
का नाश हो,लोक-ऐषणा भी संयत हो।
मनु-शरीर में आत्म-रंग दिव्य प्रकाश,
विज्ञान - अध्यात्म मिलन में अनुभूत हो।
व्यथा मानवता की पावन अग्नि में लय हो,
विशाल मन, उदार-सहिष्णुता की जय हो।
@ मीरा भारती
पुणे, महाराष्ट्