मध्यप्रदेश पेंशनर्स को मंहगाई राहत (डीआर) दिये जाने में ऐसा सौतेला व्यवहार पहले कभी देखने में नहीं आया जैसा अब आने लगा है। पहले जितना महंगाई भत्ता बढ़ता था नियमित कर्मियों का उतने फीसदी पेंशनरों की महंगाई राहत बढ़ती थी पूरी की पूरी, अब पिछली बार दी गई आधी अधूरी। नियमित को दिया 8 प्रतिशत और पेंशनर्स को मिला मात्र 5 प्रतिशत अर्थात नियमित से 3 प्रतिशत कम। (केंद्र ने दिया 31 प्रतिशत राज्यकर्मियों को केंद्र से 11 और पेंशनरों को 14 प्रतिशत कम) मतलब नियमित घाटे में, पेंशनर्स अधिक घाटे में )।
दूसरी बार भी वही गणित, उससे भी बुरा, केंद्र 34 फीसदी करने वाला है और हमारे राज्य ने अब 31 प्रतिशत (11 प्रतिशत बढ़ाकर) किया, नियमित कर्मियों का और पेंशनरों को अधर में फिर छोड़ दिया, अब मध्यप्रदेश के पेंशनर्स मात्र 17 प्रतिशत महंगाई राहत ही पा रहे हैं ।
(अर्थात 31 से 14 प्रतिशत कम) सबसे बुरी बात है कि देशभर में महंगाई एक साथ बढ़ती है उसका असर भी सभी राज्य के कर्मचारियों पर एक साथ ही पढ़ता हैं। इसके लिए कोई नीति निर्धारित नहीं हैं। उस बढ़ी महंगाई के ऐवज में सभी की जेब से रूपया भी बराबर बाहर निकलकर खर्च होता है। वह भी खर्च करता है जिसका डीए/डीआर बढ़ा है, उसके लिए आसान हैं, जिसका नहीं बढ़ा, वह भी खर्च करता है, लेकिन उसके लिए खर्च करना मुश्किल होता है। देश में जब एक साथ महंगाई बढ़ जाती हैं तो केंद्र व सभी राज्यों के कर्मचारियों का महंगाई भत्ते/राहत का निर्धारण आदेश भी एक ही जगह याने केन्द्र से होना चाहिए ताकि भुगतान हर राज्य एक ही समय पर केंद्र के आदेश पर ही एक साथ भुगतान कर सकें। यह गलत है कि आधे अलग हिसाब से अलग समय से, आगेपीछे होकर दे रहे हैं और शेष बचे हुए राज्य अलग हिसाब से अलग-अलग समय पर दे रहे हैं। इससे कर्मचारियों व पेंशनरों को ऐरियर (बकाया राशि) नहीं मिलने से बहुत ज्यादा आर्थिक नुकसान होता है।
ये वही पेंशनर्स हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में वफादारी और मेहनत से नौकरी की है। पेंशन उनका, उनके परिवार का हक है, अधिकार है। उसे कोई छिन नहीं सकता। सही समय पर एवं पूरी महंगाई ना देकर उनका ये हक उनसे छीना जा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
पेंशनर्स सीधी बात समझता है, बीच का लौछा नहीं, उसका हल निकालना उसकी जिम्मेदारी नहीं। वो समझता हैं महंगाई बढ़ी, केंन्द्र ने दिया, उन्हें मिला, ...
हमारे राज्य ने नहीं दिया, हमें नहीं मिला। हमें कम मिला। हमें केंन्द्र की घोषित दरों से नहीं मिला। उन्हें जिस माह समय से मिला, उस माह समय से हमें नहीं मिला। यही बात का तो घाटा हो रहा हैं, नियमित कर्मचारी भी यही सीधी बात आसानी से समझता है। मिला-नहीं मिला, कम मिला, देरी से मिला, नुकसान हुआ या छोटा-बड़ा टूकड़ा मिला या फिर पूरा मिला।
पेंशनरों को बेचारा बनाकर क्यों सितम होता हैं, उन्हें धाराओं से क्या लेना, राज्यों के मसलों-मुद्दों, आपस के पेंच से क्या लेना। यह पेंशनर्स की जिम्मेदारी नहीं हैं।
सही समय पर महंगाई बढ़ती हैं तो उसी समय पर पूरा का पूरा महंगाई भत्ता और राहत मिलनी चाहिए। पेंशनर्स इतनी बात आसानी से समझते है। पेंशनर्स को सही समय पर पूरी महंगाई राहत ना मिले तो वह भोजन करना तो छोड़ नहीं देगा, दो समय के बजाए एक समय खा लेगा, जीवन जीना तो छोड़ नहीं देगा, जैसे तैसे भगवान भरोसे जीयेगा, अपनी हाय निकालते रहेगा, कुढ़-कुढ़कर । फिर कहेगा सबको सन्मति दे भगवान ! ताकि हमारा भी भला हो और उनका भी ! देने वाले श्रीभगवान !
पेंशनर्स के लिए कहा है-
इन चिरागों में कभी रौशनी कम नहीं होती
प्यार का तेल और बाती अगर मिलती रहे।
महंगाई बढ़ने पर, मिलती राहत सबकों तो
बस इनको भी समय पर राहत मिलती रहे !
पेंशनर्स के चरागों में रौशनी कम नहीं हों इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार, सभी कर्मचारियों को जारी महंगाई भत्ते के साथ, समान महंगाई राहत पेंशनर्स को भी उसी समय से प्रदान करें !
मदन वर्मा " माणिक "
इंंदौर, मध्यप्रदेश
मो. 6264366070