कहाँ गए वो डरने वाले जो हर बात पर भारत और हिन्दुत्व को कोसते है। 'कश्मीर फ़ाइल्स' पर क्यूँ सलमान, शाहरूख, आमिर, जावेद अख़्तर और नसरूद्दीन शाह चुप है? जिनको इसी देश की जनता ने आन-बान-शान बख़्शी और सर आँखों पर बिठाया, और उनकी फ़िल्मों को प्रोत्साहित करके उनको अरबों पति बनाया। न बॉलिवुड के किसी दिग्गज के मुँह से इस फ़िल्म की तारीफ़ में दो शब्द निकल रहे है। क्या ये बात साबित नहीं करती की बाॅलीवुड पर खानों का राज चलता है। और तो और असदुद्दीन ओवैसी जो कहते थे योगी मोदी के बाद आपका क्या होगा, उनकी तरफ़ से भी एक भी बयान नहीं आया। हर अल्पसंख्यक कश्मीर फ़ाइल्स को कोसते हुए इसे मुसलमानों के खिलाफ़ और “इस्लामोफोबिया” बता रहा है। पर क्यूँ कोई आगे आकर ये बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा कि, हाँ ये उस वक्त के जेहादीयों की गलती थी, कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ नहीं होना चाहिए था। अगर हर मुसलमान ये सच्चाई हज़म करने की ताकत रखते है, सच कुबूल करते है तो हर हिन्दु उनके सार ज़ुर्म माफ़ करने की दरियादिली भी रखते। अगर सेक्युलर हो तो बनकर भी दिखाओ।
लेकिन एक भी मुसलमान कश्मीर में हुए “हिंदु, मानव व सांस्कृतिक नरसंहार” पर पश्चाताप जताता या लज्जित होता नहीं मिलेगा, वह इस घटना को नकारने के लिए हर किंतु-परंतु करेगा। और यही कट्टरवाद उनकी जमात में सरेआम रास्तों पर नमाज पढ़ने की ताकत है। जिससे वे कभी काफिरों की जान और माल के लिए अपराधबोध महसूस नहीं करते है। जबकि कर्णाटक में कुछ बच्चें खूंखार इस्लामिक साज़िश के विरूद्ध में “जय श्रीराम” का नारा लगा रहे थे तो कई बेचारे हिंदु अपराधबोध महसूस करते कह रहे थे कि वे लड़के गलत हैं, यही तो हमारी दुर्बलता है। हम हिन्दु नर्म दिल है इसी का उदाहरण लीजिए ना आपको कश्मीर फाइल्स बनाने और देखने में 32 साल लग गए, जबकि ये फ़िल्म 30 साल पहले ही बननी चाहिए थी।
खैर देर आए दुरुस्त आए पर एक बात तो है कि काश उस वक्त मोबाइल की सुविधा होती, सोशल मीडिया सतर्क होता और प्रधानमंत्री मोदी होते तब उस वक्त परिस्थितियां कुछ अलग जरूर होती। इस कोम और कांग्रेस ने मिलकर जो कश्मीर की कब्र खोदी थी मोदी जी ने 370 हटाकर भरपाई कर दी है। अभी 30 % बाकी है।
यही मानकर चलो कि 'कश्मीर फाइल्स' कश्मीरी हिंदुओं के अतीत को नहीं बल्कि कहीं ना कहीं हमारे भविष्य को दिखा रहा है, ये फ़िल्म साफ़ कहती है ,आप भाई चारा वाले में से चारा हो बस, और शारदा की तरह तुम्हारी स्त्री का भी यही हाल होगा यदि नहीं बदले।
किसी प्लेटफॉर्म ने इस फ़िल्म का प्रोमोशन नही किया। विपक्ष से लेकर पूरा बॉलीवुड और पूरा पाकिस्तान ज़ोर लगा रहा है कि फ़िल्म लोगो तक न पहुंचे।
एक भी मुस्लिम इस फ़िल्म को देखने नही जा रहा। इंटरनेशनल जिहादी कम्युनिटी एप्स से रेटिंग घटवा रही हैं सिनेमा खाली होने के बावजूद भी हाउस फूल का बोर्ड लगाया जा रहा है कई जगह। यही बात साबित करती है कि मुसलमान खुद ये मानते है कि कहीं न कहीं जेहादीयों ने गलत किया है। पर इतनी समस्याओं के बाद भी ये फ़िल्म घनघोर अंधेरे में जलती मशाल साबित हो रही है। पहली ऐसी फिल्म है जिसका प्रमोशन जनता कर रही है। पहली ऐसी फिल्म है जो सोए हुए मुर्दो में जान फूंक रही है। पर कुछ एक हिन्दु एक फ़िल्म देखकर सुधरने वाले बिलकुल नहीं क्यूँकि वो सुधरना ही नही चाहते उसे सब दिख भी रहा है,समझ भी आ रहा है की क्या हो रहा है,भविष्य में क्या होगा, उसे केवल सस्ते पेट्रोल, फ्री बिजली, फ्री पानी कौन देगा,उसकी चिंता है,भविष्य की नहीं।
कांग्रेसियों की मानसिकता का भी जवाब नहीं। केरल कांग्रेस ने ट्वीट कर यह भी कहा कि पिछले 17 सालों (1990-2007) में कश्मीर में हुए आतंक हमलों में 399 कश्मीरी पंडित मारे गए हैं. इसी अवधि में आतंकवादियों की ओर से मारे गए मुसलमानों की संख्या 15,000 है। अरे आतंवादी अगर 25000 भी मारे जाते तो भी कोई नुकसान नहीं होथा, उनके लिए किसीके दिल में हमदर्दी कैसे हो सकती है?
और केरल कांग्रेस के इस ट्वीट पर अभी तक राहुल गांधी, सोनिया या प्रियंका गांधी की ओर से अब तक कोई टिप्पणी नहीं आई है। जिसे एक तरह से ट्वीट पर उनकी सहमति माना जा रहा है।
बात यहाँ हिन्दु मुस्लिम की नहीं बात है मानसिकता की, सालों से भारत में रहने के बावजूद मुसलमान क्यूँ भारत के नहीं बन सकें? क्यूँ जेहादी, आतंकवादी और कट्टरवादियों को गलत बोलने से कतरा रहे है? क्यूँ उनकी गलत गतिविधियों का पर्दाफ़ाश करके खुद को बेदाग साबित करने की कोशिश तक नहीं करते। अगर भारत का हर मुसलमान अपनी कोम के ऐसे गलत करने वालों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते तो आज जात-पात के नाम पर देश बंट रहा है वह कभी नहीं होता। न इतनी नफ़रत फैलती न कोमवाद होता। अब भी समय है, सच के साथ खड़े रहना आपको महान बनाता है गलत का साथ आपको नीचे गिराता है।
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर