बदनसीब

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क   


क्यों उतरे श्रृंगार उसका

क्यों पूंछे सिंदूर

चूड़ियां क्यों टूटे उसकी

जिसका तो उजड़ ही गया संसार

सारे सपने मिल गए मिट्टी में

टूटे सब ही आशा के तार

बिन उसके हुआ सुना संसार

जो था साथ और सहारा भी

नहीं ओजल होने देता था एक पल भी

छोड़ गया वो बे– आसरा उसे

तोड़ सारे बंधन और वादे भी

न ही आया ईश्वर को कोई तरस

और पूछा भी नहीं मर्जी उसकी

बेवजह ही तोड़ दिया उनका जोड़ा

लिख दिया उम्र भर का बिछोड़ा

न ही बची कोई उम्मीद वापसी की

चल पड़ा वह ऐसे देश

न जा पाई वह साथ उसके 

न ही पाई रोक उसे

लिखी किस्मत ने जो कहानी

उसका तो  हैं वह दरवेश

मिटी मिट्टी में दब के सभी उम्मीदें

अब के नहीं आयेंगे पीयू उसके


जयश्री बिरमी

अहमदाबाद