धान खरीद की व्यवस्था डाल रहे किसानों की जेब पर डाका

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

बांदा। पचनेही गांव के किसान शिवमंगल को धान बिक्री के लिए 20 दिसंबर का टोकन मिला था। वे लाइन में लगे रहे मगर तौल नहीं हो सकी। पांच दिन बाद दोबारा रजिस्ट्रेशन कराने की बाध्यता की वजह से 25 को फिर पंजीयन कराया। उनके धान की तौल दूसरी बार भी नहीं हो पाई। शिवमंगल को 40 क्विंटल धान बेचना है। वे 12 दिन से मंडी के क्रय केंद्र पर ट्रॉली में धान लेकर पड़े हैं। रोजाना एक हजार रुपये ट्राली का भाड़ा दे रहे हैं। चाय, पानी, खाने, नहाने, धोने में दो से तीन सौ रुपये खर्च हो रहे हैं। कड़ाके की ठंड में खुले में रातें बिताकर जान भी जोखिम में डाल रहे हैं। वे बताते हैं कि अब तक 15 हजार रुपये खर्च कर चुके हैं। पूरा धान 77 हजार रुपये में बिकेगा। समय पर बिक जाता तो बिना वजह खर्च हुई रकम उनकी बचत में शामिल होती। सरकारी सिस्टम ने उनकी बचत पर डाका डाल दिया है। फतपुरवा गांव के किसान अखिलेंद्र सिंह ने बताया कि दो ट्राली में 120 क्विंटल धान लेकर 13 दिन से मंडी में पड़े हैं। भाड़ा आदि पर अब तक 17,500 रुपये खर्च कर चुके हैं। करीब दो क्विंटल धान अन्ना गोवंश खा गए हैं। क्रय केंद्रों पर धान की तौल समय पर न होने से शिवमंगल और अखिलेंद्र की तरह सैकड़ों किसानों की जेब कट रही है। मंडी में किसान धान लेकर 10-15 दिन से पड़े हैं। उन्हें प्रतिदिन करीब 1000-1200 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। देरी से तौल होने से किसानों को 10 से 20 हजार रुपये तक नुकसान हो रहा है।धान बिक्री के लिए पंजीकरण कराने के बाद किसानों को तौल की तारीख का टोकन जारी किया जाता है। उस तारीख को किसान धान लेकर क्रय केंद्र पर पहुंच जाते हैं। ज्यादातर क्रय केंद्रों पर तौल कांटों व पल्लेदारों आदि की कमी है। इससे उस दिन टोकन वाले लगभग आधे किसानों के धान की तौल नहीं हो पाती है। तौल न होने की स्थित में टोकन स्वतरू निरस्त हो जाता है। दूसरी बार पंजीयन पांच दिन बाद होता है। दूर से आए किसान ट्रैक्टर ट्रॉली में धान लेकर क्रय केंद्रों पर ही डोरा डाले हैं। कई किसानों की दूसरी बार पंजीयन में भी तौल नहीं हो पाई है। इससे परेशान ज्यादातर किसान अब टोकन व्यवस्था को ही खत्म करने की मांग करने लगे हैं।