खुश हूँ अपना बनाने मे

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

कुछ कह नहीं सकती जमाने से,

कि वक्त कितना लगा,तुम्हें मनाने में।

तुम सोचते ही रहे बेखबर होकर,

मैं जूझती रही तुम्हें,अपना बनाने में।

पता नहीं कि अब तक होश में हो कि नहीं,

मैं तो बहुत खुश हूं तुम्हारे पास आने में।

बड़ी मशक्कत से मिली हैं राहें अपनी,

क्यूं जाया करें वक्त यूं ही आजमाने में।

कभी-कभी तो समझ लो बातें मन की,

क्या रखा है हर बार यूं ही बड़बड़ाने में।

ये प्रेम की तासीर बड़ी चटपटी है साहिब,

जाने कितने  मिट गए इसे  पचाने में।


अनुपम चतुर्वेदी,सन्त कबीर नगर, 

उत्तर प्रदेश