भारत त्योहारों का देश हैlइन त्योहारों का महत्वआज से नहीं अगर यह कहा जाए हजारों वर्षों से है तो अतिशयोक्ति नहीं होगीl हर त्यौहार का अपना एक महत्व हैऔर सामाजिक संरचना में किसी-न-किसी रूप में उसका योगदान रहा है। विविधता में एकता वाले देश में अलग -अलग प्रांतों मेंअलग-अलग त्यौहार होते आ रहे हैंlअनोखा और विचित्र श्रेणी भी इन त्योहारों का है।कुछ छोटे त्योहार होते हैं और कुछ राष्ट्रीय त्योंहार के रूप में जाने जाते हैंlस्वास्थ्य के लिहाज से भी त्योहार बनाया गया हैl दुनिया के अन्य देशों में शायद इतने त्योहार नहीं होंगे जितने भारत में हैंlदुर्गापूजा, दीवाली,छठ,पोगल,बैसाखी आदि प्रचलित त्यौहार तो हैं ही इन त्योहारों में एक और त्योहार जुट गया है जिसे हम बकवास त्योहार का महापर्व कर सकते हैंlवह है लोकतंत्र का महापर्व चुनावl उपरोक्त त्योहारों में कुछ त्योहार खाने पकाने का त्योहार होता हैl इसी श्रेणी में लोकतांत्रिक व्यवस्था का यह त्यौहार भी शामिल किया जा सकता हैlयह कथन कुछ लोगों के लिए के लिए पचने वाला नहीं हैlलोकतंत्र के लिए ऐसा कहा जाना ठीक नहीं हैl ऐसा कहने वालों पर राजद्रोह का केस ठोक दिया जाना चाहिएl
देश में जितने भी पर्व- त्योहार हैं साल में एक बारआता है।लेकिन यह चुनावी पर्व पांच साल में आता हैlइसलिए इसकी महिमा काफी हैlअन्य जोभी चुनाव है कुर्सी का सुख प्रदान नहीं करते हैं,किंतु यह तो सत्ता सुख प्रदान करने वाला होता हैl पांच सालों बाद जो त्योहार लोगों के समक्ष उपस्थित होता है स्वाभाविक रूप से खुशी का माहौल किसी के लिए भी होता हैl लोकतंत्र के वोटर इतना सुख बटोरते हैं जिसका वर्णन करना मुझ जैसे लेखक के लिए संभव नहीं हैlकुर्सी के दावेदार वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए दिल खोलकर धन लूटाते हैंlलूटने वाले और लुटाने वाले दोनों सुख बटोरने में पीछे नहीं रहते हैंl
लोकतंत्र समता का अधिकार देता है,लोकतंत्र खुशहाल जिंदगी जीने का अधिकार देता है,लोकतंत्र देश के गतिशील बनाने का जरिया है, लोकतंत्र खुशहालीऔर समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने वाला शासन व्यवस्था है। गुलाम भारत कोआजादी के बाद सत्ता के माध्यम से देश को सर्वश्रेष्ठ लोकतांत्रिक देश बनाने का संकल्प थाlलेकिन सर्वश्रेष्ठ क्या इसे तो पीछे धकेल कर रख दिया गया हैlजब वोट की राजनीति जाति,धर्म,मजहब,ऊंच-नीच भेदभाव का विस्तारअपने कुर्सी की चाहत में फैला देगा तो देश कैसे गतिशील होगा?जब लोभ की राजनीतिक जाल फेंक कर वोट बटोरा जाएगा तो कभी भी लोकतांत्रिक गौरव प्राप्त न होगीl सचमुच लोकतंत्र का पर्व बकवास का त्योहार बनकर रह गया हैl लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध पक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण हुआ करती हैl लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में जो सत्ता की कुर्सी पर काबिज हो जाते हैं वह विरोध पक्ष को कमजोर करने में कसर नहीं छोड़ते हैंlयही तो देखा जा रहा हैlपता नहीं किसी को यह दिखता हैअथवा नहींl अगर सचमुच यह है तो देश गतिशील नहीं हो सकता हैl जगतगुरु बनने की बात तो दूर की कौड़ी हैl
अरविंद विद्रोही