मान्यता है कि श्री गणपति से मंगल, श्री विष्णु से सद्गति, भोले भंडारी से ज्ञान, श्री सूर्यनारायण से आरोग्य, देवी भगवती से ऐश्वर्य, हनुमान जी से शक्ति, माता शारदे भवानी से विद्या, मां शीतला से कंचन काया, कार्तिकेय जी से सैन्य सफलता और यश की कामना की जाती है, तो तमाम तरह के भय नाश, ग्रह-संकट से मुक्ति और तुरंत कार्य सिद्धि के लिए भैरव जी की उपासना की जाती है। रविवार और मंगलवार इनका अति प्रिय दिवस है। कलियुग के जागृत देव श्री भैरव नाथ की आराधना की पुनीत तिथि भैरवाष्टमी है, जो मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आती है।
शैव व शाक्त, दोनों संप्रदायों में समान रूप से पूज्य भैरव जी भरण-पूरण के देवता हैं। इन पर देवी मां और जगत् पिता शंकर सदैव प्रसन्न रहते हैं। भैरव शब्द ‘भ’, ‘र’ और ‘व’ से बना है, जिसका आशय भरण, संहार और विस्तार से है। भैरव चालीसा में कहा गया है- ‘श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा।।’
देवी भक्तों के संरक्षक, भोले भंडारी र्के प्रधान सहयोगी, तंत्र-मंत्र-यंत्र के ज्ञाता, विपत्ति निवारण और ग्रह मुक्ति के देवता भैरव जी की पूजा बहुत लाभकारी है। इनका आपउद्धारण मंत्र- ‘ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धाराणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं स्वाहा’ अत्यंत फलदायक होता है। भैरव जी की पूजा-अर्चना पूजन की तीनों पद्धतियों से की जाती है। इनकी सामान्य पूजा भी होती है, तो तांत्रिक पूजा भी की जाती है। भैरव तंत्र जगत में श्री विष्णु रूप में स्थापित हैं। यही कारण है कि भैरव जी के अष्टादशनाम,108 नाम, सहस्रनामादि में पहला नाम जगत नियंता श्रीविष्णु से प्रारम्भ होता है। भैरव जी के प्रधान रूपों की संख्या आठ है, जिसे ‘अष्टभैरव’ कहा गया है। ऐसे इनके 64 रूपों का उल्लेख भी मिलता है। श्री भैरव जी का वाहन श्वान है।
श्री भैरव जी के आराधना स्थल भारत के सभी नगरों में देखे जा सकते हैं। इन सभी स्थानों पर तीर्थ पाल, नगर संरक्षक, नगर कोतवाल या संकट मुक्ति केंद्र के रूप में इनकी प्रसिद्धि युगों से है। वाराणसी के काल भैरव, उज्जैन के विक्रांत भैरव, दिल्ली के किलकारी भैरव, कन्याकुमारी के भूत भैरव, विंध्याचल के लाल भैरव, गया के रुद्रकपाल भैरव, अगरतला के त्रिपुरेश्वर भैरव, देवघर के आनंद भैरव, वृंदावन के भूतेश भैरव, ज्वालामुखी के उम्मत्त भैरव, जालंधर के भीषण भैरव, बैजनाथ के भूतनाथ भैरव, प्रयागराज के भव भैरव, जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ भैरव, पटना के व्योमकेश भैरव, कुरुक्षेत्र के स्थाणु भैरव, कामाख्या के उमानाथ भैरव, श्री शैल पर्वत के ईश्वरानंद भैरव, कांची के रुरू भैरव, कश्मीर के त्रिसंध्येश्वर भैरव और रामगिरी के चंड भैरव पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।
श्री भैरव जी को ‘शक्तिपुंज’ कहा गया है। भक्ति की शक्ति प्रदान करने वाले देव भैरव जी की भक्ति के आलोक में जीवन के उलझे सूत्र सहज ही सुलझ जाते हैं। भैरव अष्टमी के दिन श्री भैरव जी की उपासना से संपूर्ण क्षेत्र भैरवमय हो जाता है।
‘नमो भैरव देवाय सर्वभूताय वै नम:। नम: त्रैलोक्यनाथाय नाथनाथाय वै नम:।।’