महामायी का श्रृंगार

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


जिन हाथों से करते हो

महामायी का श्रृंगार

जिन हाथों से उड़ाते हो

चुनरिया माँ को

जिस मन से रखते हो उपवास

जिन हाथों से धो चरण कन्याओं के करते

पूजा अर्चना

उड़ाते उन्हें चुनरिया

बांधते हो कलावा

खिलाते हो पूड़ी हलवा

फिर क्यों उन्हीं हाथों से

करते हो अनादर

कभी कर हत्या कोख में ही

कभी कर तार तार इज़्ज़त

खींच आँचल तन से

क्यों करते हो पाप लूट इज़्ज़त उनकी

क्यों बनाते हो शिकार हवस का अपनी

क्यों करते हो अत्याचार 

किसी बेटी, बहन, बीवी, माँ पर

क्या नहीं दिखता रूप माता का उनमें 

जिन का इतनी चाव भक्ति भाव से करते हो आराधना

पूरी नवरात्रि

करते करते हो दर्शन मंदिर मंदिर 

ऊंची से ऊंची कठिन चढ़ाई भी टेकने माथा महामायी के दरबार में

फिर क्यों कैसे बन दानव करते हो पाप बढ़ा यही पैर और हाथ

हो सके तो टटोल मन अपना

और मत कर ये पाप

किसी भी बेटी, बहन, बीवी, पत्नी, माँ के साथ

तभी होगा सच्चा श्रृंगार माँ का

सच्ची भक्ति सच्ची आराधना माँ की

वरना सब है व्यर्थ सब है व्यर्थ

क्योंकि दे दर्द,दुःख, तकलीफ, आसूँ अपने मद में 

कर रहा तू बस अनादर महामायी का 

छल उसे यूँ भक्ति के नाम पर

हो सके तो जला ले अलख ऐसी मन में हो न फिर कोई भी कैसा भी पाप तुझ से

तब हो जाएगी प्रसन्न महामायी भी जब खिलेंगी मुस्कानें हर बेटी , हर बहन,

हर बहू, हर पत्नी ,हर माँ के चेहरे।।


.....मीनाक्षी सुकुमारन

      नोएडा